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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।
 
पिछले 53 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलमआज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-54

विषय - "व्यवहार" 

आयोजन की अवधि- 10 अप्रैल 2015 (शुक्रवार) से 11अप्रैल (शनिवार) की समाप्ति तक (यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)

 
बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य- समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए.आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप पद्य-साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

 

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :- 

  • सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान जितनी चाहें रचनाएँ पोस्ट कर सकते हैं। 
  •  रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें.
  • रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे अपनी रचना पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं.
  • प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें.
  • नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.


सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है. 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं. 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना, एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.   

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 10अप्रैल 2015, दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें
मंच संचालिका 
डॉo प्राची सिंह 
(सदस्य प्रबंधन टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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Replies to This Discussion

आदरणीय मिथिलेश सर! आपकी लगन और उर्जा को नमन!

बहुत सुन्दर गीत हुआ है,हार्दिक बधाईयां!

आदरणीय कृष्ण भाई जी हार्दिक आभार 

आ0 भाई मिथिलेश जी, यह गीत भी लाजवाब हुआ । पुनः बधाई स्वीकारें ।

आदरणीय लक्ष्मण धामी सर जी, उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार 

आदरणीय मिथिलेश जी अति सुन्दर रचना पर अंतस की प्रशंसा स्वीकार करें ,बधाई

आदरणीय सत्यनारायण सिंह जी आपकी सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया से सदैव रचनाकर्म को बल मिलता है. हार्दिक आभार 

आदरणीय मिथिलेश भाई 

नया विश्वास जगा दो फिर, हृदय से तम को भगा दो फिर

अभी तो इतनी ही दरकार,

ध्यान से पढ़ने पर लगा कि फिर  के बाद पाठक के मन में प्रश्न उठता है कि ....... फिर..... क्या ?   फिर के बाद अभी तो इतनी ही दरकार, .......... यह पंक्ति सामजस्य बिठा नहीं पाती ।

मुझे लगता है फिर को पहले रखने बात बन जाएगी। ............

नया विश्वास जगा दो फिर, हृदय से तम को भगा दो फिर

किसी की भूख मिटा दो तुम, किसी की प्यास बुझा दो तुम

अभी तो इतनी ही दरकार,

इस बहतरीन रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें 

 

आदरणीय सर, आपने बहुत अच्छा सुझाव दिया है, वाकई अगली पंक्ति से सामंजस्य बेहतरीन हो गया और गीत का अन्तर खिल उठा. इस अमूल्य मार्गदर्शन और गीत की सराहना के लिए हृदय से आभारी हूँ. सादर 

समारोह में चोथी सुंदर रचना पस्तुत उपलब्ध कराने से ही मान बढ़ गया आपका | हार्दिक बधाई श्री मिथिलेश वामनकर जी

 

टेबुल पर उंगलियों से संभवतः टप-टप करते हुए इस गीत की रचना हुई है.

सनातन गीति-काव्य की दशा वाचन/गायन में प्रवाह की अपेक्षा करती है. इसे प्रस्तुत गीत में एक-दो जगह बाधित देख रहा हूँ, आदरणीय मिथिलेश भाई. किन्तु, इस नैसर्गिकता को गीत का प्राण कहा गया है. इसमें शब्दों की मात्रिकता की जगह पंक्तियों (के शब्दों) को भावों की आवृति के अनुसार प्रवहमान होना होता है. इस संदर्भ में केदारनाथ अग्रवाल के कुछ गीत देख जाइयेगा. संदर्भ केलिए - मांझी! न बजाओ वंशी मेरा मन डोलता

इस प्रयास के लिए बधाई.. .

आपकी चतुर्थ प्रस्तुति भी अच्छी लगी, बधाई आदरणीय मिथिलेश भाई.

व्यवहार को साधने की राह दिखाता सुन्दर गीत हुआ है आ० मिथिलेश जी 

दंग हूँ आपकी एक ही विषय पर विविधता लिए हुए इतनी ऊर्जस्वी प्रस्तुतियां देख कर... सच में महोत्सव का पूरा लुत्फ़ उठा रहे हैं आप... और ये देख कर आनंद आ रहा है.

शुभकामनाएं 

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