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आदाब। उपरोक्त टिप्पणियों से सहमत होते हुए कहना चाहता हूँ कि पृष्ठभूमि और परिवेश के अनुसार परिदृश्य के भाव व संवादों में बढ़िया क्षेत्रीय शब्द पिरोकर चिर-परिचित कथानक व कथ्य को उम्दा आयाम दिया गया है इस बढ़िया रचना में। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।
हाँँ, एक बारगी ऐसा ज़रूर लगा कि आरंभ में आप इसे विवरणात्मक शैली में लिखना चाह रहे थे, आगे चलकर यह संवादात्मक शैली में हो गई। या यदि ऐसा किया ही है, तो फ़िर आरंभिक विवरण या तो कम किया जा सकता है या एक-दो अतिरिक्त संवादों में ही पिरोया जा सकता है, क्योंकि आगे के बढ़िया संवाद में बहुत कुछ कहलवा दिया गया है : //' बिको।वोट दो।बेगारी करो।इज्जत लुटने दो।अपने हिस्से का सरकारी राशन लाला से खैरात में लो।कोई कागद पर नाम लिखने चमार टोला जाओ,तो चार हजार टके दो।रिरियाते फिरो।यही है न हमारे वोट का मोल? बताओ।' एक ही सांस में झगरू इतना सब कुछ कह गया।
' सही है। पर उपाय? भेड़ियों में भेड़ कहां से लाएं?'...//
अंतिम कुछ पंक्तियाँ प्रतीकात्मक हैं, तो तनिक स्पष्टता माँग रही हैंं मेरे विचार से।
(कुछ जगहों पर विरम चिह्न या स्पेसिंग सही कर लीजिएगा।)
कटाक्ष के साथ स्वाभिमान जाग्र करती बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय सरजी।
//' जो कुछ नहीं दे रहा है।काम करने की बात कह रहा है,उसे भी तो आजमाएं।सही होगा, कि नहीं?' //
वाह, वाह. यह है असली जाग्रति की निशानी. लघुकथा बहुत ही प्रभावशाली और प्रदत्त विषयानुकूल हुई है, जिस हेतु ढेरों-ढेर बधाई.
आखिरकार
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एक तरफ़ कोरोना काल लोगों की जिंदगी में मुसीबतों का पहाड़ लेकर आया था वहीं दूसरी ओर रविदास की झोली खुशियों से भर दी थी।लेकिन इसका संपूर्ण श्रेय रविदास की अद्भुत लगन और अदम्य इच्छा शक्ति को जाता है।
कुछ लोग इसे भाग्य का चमत्कार भी कह रहे हैं।
इस मामले का आगाज आज से तेतीस साल पहले 1987 को देव उठनी ग्यारस को हुआ था। उस वक्त रविदास महज बीस साल का था। उस दिन रविदास का रिश्ता तय हुआ था।दोनों परिवार खुश थे।सामूहिक भोज का भी आयोजन था।मौका देख कर रविदास अपनी होने वाली पत्नी से वार्तालाप करने लगा।दोनों एक दूसरे की पसंद नापसंद पर चर्चा करने लगे।इसी बीच रविदास की मंगेतर ने रविदास की शिक्षा पर सवाल कर दिया।रविदास की बोलती बंद हो गयी।लेकिन वह लड़की भी पीछे पड़ गयी।
आखिरकार रविदास ने बता दिया,"वह दसवीं फ़ेल है।"
"फिर तो तुमने जो उम्र बताई, उसका भी कोई प्रमाण नहीं है।"
रविदास की चुप्पी से लड़की उखड़ गयी और रविदास को झिड़क कर बोली,"मुझसे शादी करनी हो तो पहले दसवीं पास कर लो अन्यथा मुझे भूल जाना।"
रविदास ने भी प्रति उत्तर दिया,"इंतज़ार करना।मैं दसवीं पास करके ही बारात लेकर आऊंगा।"
"मुझे तुम्हारी शर्त मंजूर है।"
युवावस्था में हुआ यह विवाद क्या रूप लेगा,इसकी कल्पना किसी को भी नहीं थी|
इसके बाद शुरू हुआ रविदास के संघर्ष का न खत्म होने वाला सिलसिला।वह हर साल परीक्षा देता लेकिन सफ़लता कोसों दूर। एक समय यह मामूली सा दिखने वाला लक्ष्य मैराथन दौड़ का पर्याय हो गया। हर साल वह एक ही विषय अंग्रेजी में असफ़ल होता था।अन्य विषयों में अच्छे अंक पाता था।
दोनों परिवार अन्य जगह रिश्ते की सलाह देते लेकिन वे लोग किसी की बात नहीं सुनते, दोनों ही बच्चे अपनी जिद पर अड़े बैठे थे। पता नहीं किस मिट्टी के बने थे। उम्र भी निकलती जा रही थी।लेकिन रविदास अपने वचन पर अटल था।
और आखिरकार उसके इंतज़ार का मीठा फल मिला।इस साल कोरोना वाइरस की वज़ह से दसवीं की बोर्ड की परीक्षायें रद्द कर दी गयीं।और जिन लोगों ने भी इस परीक्षा के लिये आवेदन पत्र दिये थे, सबको उत्तीर्ण घोषित कर दिया गया।
तेतीस साल के लंबे सब्र और इंतज़ार के बाद रविदास का घर बस गया। इस वक्त रविदास की आयु तिरेपन (53) वर्ष हो चुकी थी। लेकिन वे दोनों खुश थे।
मौलिक,अप्रकाशित एवम अप्रसारित
प्रकृति भी यदा कदा मानवीय आकांक्षाओं की पूर्ति को दिशा दिया करती है।उम्मीद के धागे को परिणाम तक पहुंचाती कोरोना का चित्रण ।लघुकथा हेतु बधाई भाई तेजवीर जी।
हार्दिक आभार आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।
रविदास के लिये भाग्य लेकर आया कोरोना। रोचक कथानक रचा है आपने।हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह जी।
हार्दिक आभार आदरणीय प्रतिभा पांडे जी।
एक वर्तमान घटनाक्रम पर आधारित बढ़िया रचना लिखी है आपने आ तेज वीर सिंह जी, बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिए
सादर नमस्कार। वाह। कोरोना की आपदा में जनरल प्रमोशन का सुअवसर और एक वफ़ादार दृढसंकल्पित युवा मंगेतर जोड़े की संघर्ष यात्रा का सुखद व दिलचस्प अंजाम बेहतरी सम्प्रेषित हुआ है। कोरोना काल की एक और बढ़िया रचना। हार्दिक बधाई आदरणीय तेजवीर सिंह जी। यदि यह सत्य घटना पर आधारित है, तो भी आपकी कल्पनाशीलता व प्रस्तुतिकरण वास्तव में बहुत प्रशंसनीय है।
हाँ, एक बात अवश्य है कि कुछ पंक्तियाँँ ऐसी भी हैं रचना के उत्तरार्द्ध में, जिन्हें युवाओं के माता-पिता या परिवारजन के संवाद रूप में कहलवाया जा सकता है। जैसे - //दोनों ही बच्चे अपनी जिद पर अड़े बैठे थे। पता नहीं किस मिट्टी के बने थे। उम्र भी निकलती जा रही थी।लेकिन रविदास अपने वचन पर अटल था।//----//
आखिरकार उसके इंतज़ार का मीठा फल मिला।इस साल कोरोना वाइरस की वज़ह से दसवीं की बोर्ड की परीक्षायें रद्द कर दी गयीं।और जिन लोगों ने भी इस परीक्षा के लिये आवेदन पत्र दिये थे, सबको उत्तीर्ण घोषित कर दिया गया।
तेतीस साल के लंबे सब्र और इंतज़ार के बाद रविदास का घर बस गया। इस वक्त रविदास की आयु तिरेपन (53) वर्ष हो चुकी थी। लेकिन वे दोनों खुश थे।//
आखिर उम्मीद का दामन पकड़े रहने पर ऊपर वाला भी सुन लेता हैं। बेहतरीन रचना के लिए बधाई स्वीकार कीजिएगा आदरणीय सरजी।
बिलकुल नए कथानक पर लघुकथा कही है आ० तेजवीर सिंह जी, हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
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