परम आत्मीय स्वजन,
ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 67 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह खुदा-ए-सुखन मीर तकी मीर की ग़ज़ल से लिया गया है|
"ये धुआँ सा कहाँ से उठता है"
212 212 1222
फाइलुन फाइलुन मुफाईलुन
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 22 जनवरी दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 23 जनवरी दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें |
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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सुन्दर ग़ज़ल हुई है आ० नादिर खान जी ,शेर दर शेर दाद क़ुबूल फरमाएं
जो दरे जानेजाँ से उठता है /
वह वफ़ा के जहाँ से उठता है /
कब नज़र की ज़बां से उठता है /
इश्क़ दिल के मकाँ से उठता है /
दूरियाँ खुद बख़ुद नहीं बढ़तीं
शक गुमाँ दरम्याँ से उठता है /
ज़ुल्म की हद न पार कर माली
शोर सा गुलसिताँ से उठता है /
पूछते हैं जला के दिल मेरा
यह धुंआ सा कहाँ से उठता है /
मुल्क में हर फ़साद ऐ लोगों
पेशवा के बयाँ से उठता है /
शोख़ उनकी नज़र जहाँ जाये
शोरे महशर वहाँ से उठता है /
हुस्न फिर इश्क़ को परखता है
जूं हि वह इम्तहाँ से उठता है /
पास कोई नहीं बिठाएगा
क्यूँ तु उस आस्ताँ से उठता है /
तू दरे यार पे झुका दे सर
मुज़्तरिब क्यूँ यहाँ से उठता है /
आह तस्दीक़ जब भरे मुफ़लिस
हश्र एक आसमां से उठता है /
(मौलिक व अप्रकाशित )
आदरणीय तस्दीक भाई , बेहतरीन गज़ल और बेहतरीन ग़िरह के लिये दिली दाद कुबूल फरमाइये । कलाम पढ के मन प्रसन्न हो गया ।
जनाब गिरिराज भंडारी साहिब ,हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया , मेहरबानी ....
जनाब तस्दीक साहब शानदार ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत मुबारकबाद
जनाब शरीफ क़ादरी साहिब ,हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया , मेहरबानी ....
जनाब शेख़ शहज़ाद उस्मानी साहिब ,हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया , मेहरबानी ....
जनाब समर कबीर साहिब आदाब ,हौसला अफ़ज़ाई का बहुत बहुत शुक्रिया ,करम मेहरबानी ....
मतले से मक़ते तक सभी अश'आर बढ़िया हुए हैं आ० तस्दीक़ अहमद खान साहिबI गिरह भी बेहद दिलचस्प लगी, मेरी हार्दिक मुबारकबाद कबूल करेंI
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