For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-71

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 71 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह क्लासिकल शायरी के महत्वपूर्ण शायर जनाब अमीर मीनाई साहब की ग़ज़ल से लिया गया है|

 
"फूल जंगल में खिले किन के लिये"

2122   2122      212

फाइलातुन फाइलातुन फाइलुन

(बह्र: रमल मुसद्दस् महजूफ  )
रदीफ़ :- के लिये
काफिया :- इन (किन, दिन, इन आदि)
 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 मई दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 28 मई दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 27 मई दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Facebook

Views: 20220

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

प्रोत्साहन  के  लिए  तहेदिल  आभार  आपको  आदरणीय  अजीत  जी . 

हिन्दी ग़ज़ल का एक उदाहरण.... आपकी शंका दूर हो जाएगी और आ0 सौरभ जी की टिप्पणी भी आप बहुत अच्छी तरह से समझ जायेंगी, कि 'किसी भाषा का किसी विधा पर हक नहीं है'------


एहतराम इस्लाम साहब की कुछ ग़ज़लों के अशआर----


याद तेरी रात भर का जागरण दे जाएगी ।
स्वप्न की भाषा को लेकिन व्याकरण दे जाएगी ।


स्वर्ण मृग की लालसा क्षण भर भी टिक सकती थी क्या
यदि पता होता कि वह सीता हरण दे जाएगी ।


और कुछ दे या न दे संघर्ष की गम्भीरता
मेरी ग़ज़लों के लिए वातावरण दे जाएगी ।,

 

और ....

दे रही है मद भरे संकेत को वातावरण जाड़े की रात ।

डर रहा हूँ कर न जाए मेरे मैं का अपहरण जाड़े की रात ।

 

गर्म ओवरकोट में सिमटा ठिठुरता-सा शिकारी दंग था

देखकर जंगल में नंगी लड़कियों का जागरण जाड़े की रात ।

 

..... अब बताइये.... ग़ज़ल बनाम हिन्दी-उर्दू !!!

आदरणीय अजीत आकाश जी, मैं चाह ही रहा था कि आदरणीय एहतराम इस्लाम साहब की ग़ज़ल के हवाले दूँ. या, आदरणीय ज़हीर क़ुरेशी की ग़ज़ल प्रस्तुत करूँ. लेकिन जाने क्या सोच कर चुप हो गया. कि, सदस्य पहले पढ़ना तो शुरु करें ! जब सदस्य पढ़ने लगेंगे तो स्वयं कई-कई-कई तरह की भ्रांतियों से बाहर आने लगेंगे. 

:-)))

वाह ! वाह ! सुन्दर शब्दों  के  संयोजन के  साथ बहुत  ही  खुबसूरत  ग़ज़ल है  ये  .आभार  आपको  आदरणीय अजित  जी  इसे  यहाँ  प्रस्तुत  करने  के  लिए .

हमारे  यहाँ  भोपाल  में  आदरणीय महेश अग्रवाल जी  अक्सर ऐसे  ही  हिंदी  में  ग़ज़ल  पढ़ते  है  लेकिन अभी  तो  गोष्ठियों में   सिर्फ  उन्हीं को  कहते  सुना था  इस  तरह ,  इसलिए  संशय  था  कि  ये  कितना मान्य है

  क्योकि साहित्य का  क्षेत्र ऐसा  है  जहाँ  मनमानिया  भी  बहुत  चलती  है व स्वयं  की  रचनाओं  के  बचाव  में  बड़े -बड़े  दिग्गज मानकों  को  धता बताने  की  बात  भी  करते  है .

अब  गलत  लिखने  पर कोई  सजा  का  प्रावधान  तो  है  नहीं . सादर :)))

//साहित्य का  क्षेत्र ऐसा  है  जहाँ  मनमानिया  भी  बहुत  चलती  है व स्वयं  की  रचनाओं  के  बचाव  में  बड़े -बड़े  दिग्गज मानकों  को  धता बताने  की  बात  भी  करते  है //

ऐसे कैसों के बीच हैं हम यह अधिक महत्त्वपूर्ण है. बौने लोगों के बीच विस्तार नहीं हो पाता. एहतराम भाई की ग़ज़लों का अर्थ समझने की कोई कोशिश करे तो ही इस बात का अर्थ है कि उनकी ग़ज़लें क्या हैं. सिर्फ़ शब्दों से ग़ज़लें नहीं होतीं. 

जी ,अबकी  ये  भी अच्छी तरह  से  साफ़  हो  गया  है  . सादर .

जनाब जहीर कुरैशी जी की हिंदी ग़ज़लों को भी साथ ही पढ़ा जाना चाहिए 

बहुत बढ़िया अभ्यास प्रस्तुति में मोहतरम जनाब तस्दीक़ अहमद ख़ान साहब व जनाब मिथिलेश वामनकर साहब सहित सभी टिप्पणियों पर ग़ौर करते हुए परिवर्तन किया जा सकता है। बेहतरीन प्रयास के लिए हृदयतल से बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीया कान्ता राय जी।
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।

मेरी तो आज तक जारी है, आप भी जारी रखें। थोडा सा औरों को भी पढ़ें।

डिक्शनरी रखिये साथ में।
--------
एक जल्दी - जल्दी वाला सुझाव
--------------///////----
जिंदगी इक ख्वाब थी जिनके लिए
वो बनाते नीड़ अब तिनके लिए।

आदमी में आदमीयत खो गई
पी गये है शर्म वो किनके लिये।।

नफ़रतों में चुन दिए रिश्ते सभी।
ये दरो-दीवार है किनके लिये।।

दो कदम भी साथ वे ना चल सके
साथ के वादे किये किनके लिये।।

पीठ पर खंजर उतारे यार ने
ये नया अंदाज़ है इनके लिये।।

बेल बूटे ये गुलाबी डालियाँ
फूल जंगल में खिले किनके लिये।।

लौट कर आते सजन हैं दिन ढ़ले।
रस्म है अब तो यही इनके लिए

सार्थक  सुझाव  दिए  है  आप  मुझे  यहाँ  आदरणीय पंकज  जी , अब  एकदम  से  जैसे  बत्ती जल  गयी  कि कहाँ  क्या  और  कैसे  होना  चाहिए   था .मैं  सुबह  से  इसके  सुधार  के  लिए  सोच  रही  थी  लेकिन  कुछ  सूझ  ही  नहीं  रहा  था . मतला में  ही  सबसे  अधिक  गड़बड़  था . आभार  एक  बार  फिर  से आपको __/\__

 

साथ जुगनू सिर्फ पलछिन के लिए

रात क्यों बर्बाद की दिन के लिए

 

कलयुगी रावण सफल अब मान लो

क्या हो सीता जो खड़ी तिनके लिए ?

 

हाशिये पर है गरीबी, भुखमरी

लड़ रहे हैं लोग लेनिन के लिए

 

लॉग आउट जो मरासिम से सदा

वेब पर आतुर वो लॉग-इन के लिए

 

पाहुना परदेश का निष्ठुर बड़ा

हर घड़ी मुश्किल वियोगिन के लिए  

 

लालची मुंह ठूसकर भर जाए बस

जिंदगी इतनी ही दुलहिन के लिए

 

वाम चलते देख कर कुछ लोगों को

चल पड़ा इक पंथ दक्खिन के लिए

 

बाँसुरी थामे फिरे वह बावरी

सांवरा विश्वास जोगिन के लिए

 

मैं प्रतीक्षित हूँ नगर में फिर भला

“फूल जंगल में खिले किन के लिए”

 

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

आदरणीय मिथिलेश जी, बहुत अच्छी ग़ज़ल कही आपने।

लॉग आउट जो मरासिम से सदा
वेब पर आतुर वो लॉग-इन के लिए

हार्दिक बधाई!!

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"रोला छंद    आओ रे सब साथ, करेंगे मिलकर मस्ती। तोड़ेंगे  हम   आम,…"
3 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"कृपया ठेले पढ़ें।एडिट का समय निकल जाने के बाद इस टंकण त्रुटि पर ध्यान गया"
4 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"रोला छंद  _ चित्र दिखाता मस्त, एक टोली बच्चों की हैं थोड़े शैतान, मगर दिल के सच्चों की ठान…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"रोला छंद ******** पके हुए  ढब  आम,  तोड़ने  बच्चे आये। गर्मी का उपचार, तभी यह…"
6 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह, आदरणीय, वाह!  प्रवहमान अभिव्यक्ति पर हार्दिक बधाई शुभ-शुभ "
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"आदरणीय समर  भाई , ग़ज़ल पर  उपस्थिति  और विस्तृत सलाह के लिए आपका आभार तक़ाबूल-ए-…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय  बड़े  भाई , आपकी रचना चित्र को अच्छे से  चित्रित  कर रही है , अंतिम बंद…"
9 hours ago
Samar kabeer commented on गिरिराज भंडारी's blog post एक धरती जो सदा से जल रही है [ गज़ल ]
"जनाब गिरिराज भंडारी जी आदाब, काफ़ी समय बाद मंच पर आपकी ग़ज़ल पढ़कर अच्छा लगा । ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है,…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"बच्चों का ये जोश, सँभालो हे बजरंगी भीत चढ़े सब साथ, बात माने ना संगी तोड़ रहे सब आम, पहन कपड़े…"
17 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 166 in the group चित्र से काव्य तक
"रोला छंद ++++++   आँगन में है पेड़, मौसमी आम फले…"
17 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . .तकदीर
"आदरणीय अच्छे सार्थक दोहे हुए हैं , हार्दिक बधाई  आख़िरी दोहे की मात्रा फिर से गिन लीजिये …"
yesterday
सालिक गणवीर shared Admin's page on Facebook
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service