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मर्म प्रभाव शाली बना है ,शिल्प में थोड़ी सी कसावट और आ जाती तो प्रभाव दोगुना हो जाता , बधाई आपको इस रचना पर आदरणीया जानकी जी
नया कथानक जानकी जी -बधाई एस हेतु
//" अब मुँह फाड़े क्या देख रहा है। ये जीवन भी शह और मात का खेल है।आज़ से हम बूढ़े राजा का वज़ीर और तुम प्यादा हो।सोच कर ज़वाब दो प्यादे का क्या काम होता है।"
" राजा के लिए अपनी ज़ान देना" मरी आवाज़ में सरपंच बोला।//----बहुत खूब ये वाकया विन्यास हुआ है। बधाई सखी बहुत सार्थक प्रयास हुआ है लघुकथा पर।
आदरणीय जानकी जी, कथा थोड़ी कमजोर रह गई । छुरी के एक वाक्य से दद्दन का ह्दय परिवर्तन ! नाटकीयता सी आ गई इससे । लघुकथा विश्वसनीयता से जितनी दूर होती जाती है उतना ही उसका प्रभाव कम होता चला जाता है। आदरणीय योगराज प्रभाकर जी की टिप्पणी से पूर्णरूपेण सहमत । सादर
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