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हार्दिक धन्यवाद आदरणीया नीताजी..
बिलकुल सजीव चित्रण लग रहा है ,बहुत सुन्दर आ. सर |
हार्दिक बधाई आदरणीय सौरभ पांडे जी!बहुत शानदार लघुकथा!युद्ध भूमि के सजीव चित्रण ने इस लघुकथा में प्राण फ़ूंक दिये!बहुत गहनता से युद्ध का विश्लेषण किया है!पुनः बधाई!
सादर धन्यवाद आदरणीय तेज़वीरजी
भाई महर्षि जी, एक् अरसे बाद आपको इस मंच पर पुनः देख कर अच्छा लग रहा है. संभवतः आप किसी एग्जाम वग़ैरह में थे !
शुभ-शुभ
आदरणीया ज्योत्सनाजी, प्रस्तुति को समय देने केलिए हार्दिक धन्यवाद
बहुत ही सधी कथा लिखी है श्रद्धेय सौरभ भाई जी । /एक मेरे न रहने भर से बाकी सभी मर जायेंगे./ । जीवन के यथार्थ को अंकित करती कथा की इस पंक्ित में कथा के प्राण है। प्रस्तुल लघुकथा का प्रभाव, संप्रेषणीयता एवं इसका उद्देश्य एकदम क्रिस्टल क्लीयर है। विषय को पूर्णरूपेण सार्थक करती इस दमदार कथा हेतु मेरी भी बधाई स्वीकार करें ।
अनन्य अनुज रवि जी, आपने जिस गहराई से प्रस्तुति को समझने का प्रयास किया है वह मेरे रचनाकत्र्म को वस्तुतः एक सार्थक आकार दे रहा है. जिस पंक्ति को आपने उद्धृत किया है वही इस प्रस्तुति के होने का कारण है. आपके पाठकत्व को हार्दिक धन्यवाद, रवि जी
शुभ-शुभ
दिल छू गई आपकी ये लघु कथा जब संकल्प और इच्छा शक्ति मिल जाएँ तो असंभव भी संभव हो जाता है |इस शानदार लघु कथा के लिए दिल से बधाई लीजिये आ० सौरभ जी |लघु कथा पर देरी से आने का खेद है कल से नेट पर आने का वक़्त ही नहीं मिला और अभी भी जल्दी में हूँ सुबह पांच बजे मुंबई के लिए निकलना है अतः तीन बजे तो उठना ही पड़ेगा शायद और रचनाएँ न पढ़ पाऊँ |
आदरणीया राजेश कुमारीजी, आप इस प्रस्तुति को समय दे पायीं यही हमारे लिए बहुत बड़ी आश्वस्ति है.
सादर धन्यवाद
संकल्प-नशा उन्मूलन
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मुरारी बाबू के शव को प्रणाम कर उनके बचपन के मित्र सोमेश उनकी धर्मपत्नी को सांत्वना देने पहुंचे
"अरे भाभी जी यह सब अचानक कैसे हो गया?"
"क्या कहें भाईसाहब कल रात ये खाना खाने के बाद सोने जा रहे थे कि अचानक से इनके सीने में दर्द उठा ----और बस ।"
"सचमुच आप लोंगों के साथ बुरा हुआ परमात्मा आप लोगों को इस असमय दुःख को सहने की I" सोमेश जब तक अपने शब्दों को विराम देते तब तक पास में बैठा मुरारी बाबू का सुपुत्र रवि यह सब सुन कर अपनी भावनाओं को काबू में ना रख पाया और जोर से फूट फूट कर रोने लगा:
"यह सब मेरे कारण हुआ है माँ ! ना मैं कल रात नशे की हालत में घर आता और ना ही बाबू जी इस तरह बिना इलाज के तड़पते हुए प्राण छोड़ते "
सुमित्रा उसके पास आकर उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली:
"यह सब तो विधि का विधान है , इसमें तेरा क्या दोष । हाँ , अगर तुम अपने अंदर की पश्चाताप की आग में जल रहे हो तो बेटा अपने पिता के सामने प्रण लेना होगा कि आज कि आज के बाद तुम ना केवल इस कुरीति का त्याग करोगे बल्कि औरों को भी नशा त्यागने के लिए भी प्रेरित । यही तुम्हारी उनके प्रति सच्ची श्रद्धाजंलि होगी ।"
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