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भाई महर्षि त्रिपाठी जी, लघुकथा कहने का सद्प्रयास हुआ है I रचना में निहित सन्देश भी सकारात्मक और सार्थक है, किन्तु यह रचना दुर्भाग्य से कालखंड दोष का शिकार हो गई I बहरहाल, प्रतिभागिता हेतु साधुवाद स्वीकार करें I
आ.कथा में दोष आ गया ,इसके लिए छामाप्रार्थी हूँ ,आ.बस इसमें दिन का गैप संसोधन में समाप्त कर दूंगा |आ. अभी मैं इस विधा में नया हूँ सो भूल बस त्रुटी हो गयी ,दोष बताने हेतु तथा कथा का सन्देश समझने हेतु आभार |
आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी आप ने बहुत ही उम्दा विषय चुना है. बधाई आप का. बस //कुछ दिन बाद ही जिले लेवल का सामन्य ज्ञान का कॉम्पटीसन था// के पहले का हिस्सा फ्लेश बेक में दरशा कर लघुकथा के प्रभाव को दुगुना कर सकते है .सादर .
बहुत शानदार लघु कथा हार्दिक बधाई
...चिलक..
"ये कैसा संकल्प ले रहें हो रघुवीर बेटा ! गंगाजल अंजुली में भर इस तरह संकल्प का मतलब भी पता !!"
"पिताजी, आप अन्दर ही अंदर घुलते जा रहें हैं | कितनी व्याधियों ने आपको घेर लिया हैं | नाती-पोतों से भरा घर ,फिर भी मुस्कराहट आपके चेहरे पर मैंने आज तक ना देखी | "
"बेटा मैं भूलना चाहता हूँ पर ये समाज मेरे नासूर को कुरेदता रहता है | अपने नन्हें-मुन्हें बच्चों को यूँ ही बिलखता छोड़ कोई माँ कैसे जा सकती हैं, यह कैसे-क्यों का प्रश्न मुझे अपने जख्म भरने नहीं देता | फिर भी बेटा मैंने संतोष कर लिया | तीस सालों में परिजनों के कटाक्ष को भी दिल में दफ़न करना सीख गया | हो सकता हैं उसका प्यार मेरे प्यार से ज्यादा हों इस लिए वो मेरा साथ छोड़ चली गयीं हो | "
"इसी समाज के कटाक्ष की ज्वाला में जल के तो मैं आज संकल्प ले रहा हूँ | मैं उनका मस्तक आपके चरणों में ले आके रख दूँगा पिता जी 'परशुराम' की तरह |"
"बेटा गिरा दो अंजुली का जल | तुम परशुराम भले बन जाओ पर मैं जन्मदग्नी नहीं बन सकता |"
मौलिक और अप्रकाशित
हार्दिक बधाई आदरणीय सविता जी!बहुत सशक्त और संदेश प्रद लघुकथा!
आभार आदरणीय | सादर अभिवादन स्वविकार करें
दिल से आभार भाई आपका | अपना कीमती समय दे हमारा मार्गदर्शन करते रहें कृपया
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