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रचना के मर्म को समझने के लिए हृदयतल से आभार आपको आदरणीया राजेश जी।
बच्चों को पाल पोस कर बड़ा करना तो हर माँ बाप का फ़र्ज़ है , आज की पीढ़ी कुछ ऐसा ही सोचने लगी है | प्रदत्त विषय पर बढ़िया रचना , बहुत बहुत बधाई आपको
कथा पर उत्साहवर्धन के लिए आभार आपका आदरणीय विनय सर जी।
आत्मनिर्भर हो गए बच्चों की मानसिकता सच में कुछ ऐसी ही हो जाती है , नेट की समस्या के चलते गोष्ठी के अंतिम पड़ाव पर आपकी कथा पर आ पाई हूँ क्षमाप्रार्थी हूँ उत्कृष्ट रचनाकर्म पर बधाई स्वीकार करें ,वैसे पीली दाल और चावल मेरी भी कमजोरी है , नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ भी प्रेषित कर रही हूँ
रचना के मर्म को समझने के लिए हृदयतल से आभार आपको आदरणीया प्रतिभा जी।
देर आये दुरुस्त आये ..माँ के हाथ से तो पीली दाल और चावल भी बड़े बड़े होटल के खाने को मात दे देता ..बधाई दी खूबसूरत कथा के लिए _/\_
सही में बच्चों की ये कैसी खुदगर्ज आकांक्षाएं होती हैं जहाँ माँ-पिता का कोई स्थान नहीं . सुंदर हुई रचना .
अंतिम पंक्ति झकझोर गयी आदरणीय विजय जोशी जी सर, समाज का दुखद सच बताती इस रचना हेतु सादर बधाई स्वीकार करें|
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