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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-90 (विषय: प्रतीक्षा)

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-90 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार का विषय है ''प्रतीक्षा', तो आइए इस विषय के किसी भी पहलू को कलमबंद करके एक प्रभावोत्पादक लघुकथा रचकर इस गोष्ठी को सफल बनाएँ।  
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-90
"विषय: प्रतीक्षा''
अवधि : 29-09-2022  से 30-09-2022 
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
ओपनबुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आदाब, Sheikh Shehzad Usmani, जी, आभार आपने लघुकथा को समय देकर अपनी राय रखी! गहन साहित्यिक  मनोवैज्ञानिक विश्लेषण करते हुए अच्छी समीक्षा की! किन्तु भाई, अंत में कहीं चूक कर बैठे  ! 

देखिए जनाब मानसी, हाउस वाइफ ज़रूर है, लेकिन उच्च शिक्षा प्राप्त है! अभी कुछ समय पूर्व विवाह हुआ है, और आज मज़बूरी में बोल रही है, जो बोल रही है, पहले से ही सोचा हुआ है, अत: पूर्ववर्ती सम्वाद, शब्द चयन उच्च शिक्षा की गवाही दे रहे हैं, साहित्यिक हैं! लेकिन जब उसका ( मानसी) गुस्सा चरम पर पहुँच गया तो

आम भारतीय गृहिणी के समान भाषा बोलने लगती हैं, फिर आनंद का व्यवहार भी सुसंस्कृत और सभ्य पुरुष / पति का नहीं रह गया है, सो, " जैसे को तैसा "

संवाद चयन मान्य होगा ! साभार  

शुक्रिया। यह लेखकीय विचार है। पाठकों के विचार उनकी टिप्पणियों व समीक्षाओं से ज्ञात होते हैं। शायद मैं अपनी बात सही तरह से न कह सका।

आदरणीय चेतन प्रकाश जी, अच्छी लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए। 

1. // मै एक अरसे से तुम्हारी हरक़तें भुगत रही हूँ।// क्या कोई पत्नी अन्तरंग क्षणों में अपने पति द्वारा किसी दूसरी के साथ आई लव यू जैसा सम्बोधन एक अरसे तक बर्दाश्त कर सकती है? मुझे नहीं लगता। पत्नी अगले ही पल पति की ख़बर ले लेगी। 

2. शीर्षक बेहतर हो सकता है।

सादर।

 नमस्कार, भाई श्री महेंद्र कुमार, लघुकथा तक पहुँचने और समय देकर संस्तुत करने हेतु आपका आभार! 

बंधु, भारत में नारी उच्च शिक्षा प्राप्त हो अथवा सामान्य अभी इतनी साहसी नहीं हुई कि अस्पष्ट अमूर्त कारणों पर अपना नया - नया वैवाहिक दाम्पत्य जीवन दांव पर लगा दे! मानसी को कुछ अस्फुट ध्वनियाँ मात्र ही तो प्राप्त हुई ं है और वह भी आनंद की मदहोशी में, उसे तो कोई नाम भी नहीं सुना,  (कृपया लघुकथा पुनः पढें) 

और, क्या आप जानते हैं, बंधु, लघुकथा का परिदृश्य जिस प्रदेश से उठाया गया है, वहाँ लडकियों का प्रतिशत लडकों के सापेक्ष कितना है, भारत में सबसे अधिक  ! 

और अधिक लघुकथा की पृष्ठभूमि में, क्षमा करें, मैं जाना नहीं चाहूँगा ! सो, धरातल पर जो वास्तव में घटता है, कथाकार मात्र उसका ही चयन करता है! यही कारण कि वर्तमान समय में लघुकथा सर्वाधिक प्रभावी साहित्यिक  साधन है ! धन्यवाद

आदरणीय चेतन प्रकाश जी,

1. //मानसी को कुछ अस्फुट ध्वनियाँ मात्र ही तो प्राप्त हुई ं है और वह भी आनंद की मदहोशी में, उसे तो कोई नाम भी नहीं सुना// फिर यह क्या है : //मदहोशी में कोई अजीब सा नाम लेकर कहता, "आई लव यू "।// आप अपनी टिप्पणी में "अस्फुट ध्वनियाँ" कह रहे हैं जबकि लघुकथा में "अजीब सा नाम"। क्या दोनों में कोई अन्तर नहीं होता? अस्फुट ध्वनियों की पहचान सुनिश्चित नहीं होती। यह कोई (व्यक्तिवाचक) नाम हो भी सकता है और नहीं भी। जबकि अजीब-से नाम में यह सुनिश्चित है कि यह कोई नाम है और वह भी अजीब-सा। और यह बात मानसी को भी पता थी। यदि उसे यह नहीं पता था तो फिर ये पंक्तियाँ लघुकथा में क्या कर रही हैं : //आज रात मानसी उखड़ पड़ी, ये क्या बक़वास है, आनंद ? "मै एक अरसे से तुम्हारी हरक़तें भुगत रही हूँ।//

2. //और, क्या आप जानते हैं, बंधु, लघुकथा का परिदृश्य जिस प्रदेश से उठाया गया है, वहाँ लडकियों का प्रतिशत लडकों के सापेक्ष कितना है, भारत में सबसे अधिक  !// जी नहीं, मैं नहीं जानता। और इसलिए नहीं जानता क्योंकि आपकी लघुकथा इसका कहीं इशारा नहीं देती कि उसके पात्र किस प्रदेश के हैं। जेण्डर अनुपात तो बहुत बाद की चीज़ है।

3. //और अधिक लघुकथा की पृष्ठभूमि में, क्षमा करें, मैं जाना नहीं चाहूँगा !// सार्थक बहसों का मैं स्वागत करता हूँ। यही मैंने इस मंच से सीखा है, यही इस मंच की विशेषता है और इसीलिए यह मंच है भी। पर अपनी रचना को डिफेंड करते हुए हम उसकी कितनी भी पृष्ठभूमि में क्यों न चले जाएँ, एक बात हमें याद रखनी चाहिए कि पृष्ठभूमि का सम्बन्ध (इशारा) उन शब्दों से होना चाहिए जो कि रचना में मौजूद हैं न कि उन शब्दों से जो रचनाकार के मनःपटल पर हैं। आपने जिस उच्च जेण्डर अनुपात की बात की है उसका सम्बन्ध आपके मनःपटल से है या कि रचना से?

सादर।

भाई,  महेंद्र कुमार जी, शुभ प्रभात  ! मुझे अच्छा लगा, 'मदहोशी  मे अजीब  सा नाम' को लेकर आपने सार्थक  चर्चा  की !  अजीब नाम एक  संज्ञा ही  होती है, न ,फिर  आनंदातिरेक की । मानसी  हर औरत की तरह उसका  वही  नाम  क्यों  नहीं लेता जो उसे  प्रिय  है, को लेकर भ्रमित है, यहीं  से संदेह  के  कीटाणु  जन्म  लेते  हैं।

//आपकी लघुकधा इस का कहीं इशारा नहीं देती कि  उसके पात्र  किस प्रदेश के हैं। जेन्डर अनुपात  तो बाद की चीज़ है।// 

बंधुवर,  लघुकथा कथा / कहानी का सूक्ष्मतम स्वरूप रहा है, उसमें कहानी / लघु उपन्यास/ उपन्यास  के समान  कथा के सभी  अंगों उपांगों ( पृष्ठभूमि की बुनावट, पात्रों का परिचय,  उनका  चरित्र चित्रण,, कथोपकथन, संवाद,  कथावस्तु, विषय-वस्तु और उद्देश्य एवं उसका विशद विवरण) कदापि  सम्भव  नहीं है, लघुकथा  मात्र  एक  शे'र की ग़ज़ल है !

सो, कहनान होगा, लघुकथा, अलग- अलग  विषयों  पर कहे गए शे'रों का  गुलदस्ता नहीं है कि पृष्ठभूमि का निर्वहन  अनिवार्य  हो !

धन्यवाद  !

आदरणीय चेतन प्रकाश जी, सादर अभिवादन!
एक सुझाव देने की धृष्टता कर रहा हूँ, //कोई अजीब सा नाम// की जगह "कोई अस्पष्ट-सा शब्द" कर दीजिए। समस्या कम हो जाएगी।
सादर।

मुझे अफसोस है, आप समय की धारा से कटे हुए जान पड़ते हैं, पात्र विशेष के बोलने का अपना विशिष्ट ढंग होता है, जिन्हें आप गलतिया़् गिना रहे हैं, वह लघुकथाकार की तेज दृष्टि है, जिसके माध्यम से पात्र विशेष के संवाद और चरित्र चित्रण को रूपायित किया गया है! रोमांस, के सम्बन्ध में मुझे यह कहना है कि यह कीबोर्ड का अपना काम है, उदाहरण के लिए बताऊँ जो कीबोर्ड मैं इस समय प्रयोग कर रहा हूँ, इसमें चन्द्र बिंदु है ही नहीं! और जिस कीबोर्ड से मैंने लघुकथा भेजी, उसमें अनुस्वार चिन्ह नहीं था ! सो आप, भाई, अव्यावहारिक बातें कर रहे हैं, सो मैं क्या कर सकता हूँ, बताइये !

आप धारा से कटा हुआ किसे कह रहे हैं श्री चेतन प्रकाश जी? महेंद्र कुमार जी को? क्यों? महेंद्र कुमार वर्तमान में लघुकथा जगत के  एक प्रखर आलोचक/ समीक्षक माने जाते हैं. इनके काम की सर्वत्र प्रशंसा हो रही है, और आप इन्हें धारा से कटा हुआ घोषित कर रहे हैं? मेरा मशविरा है कि ऐसी व्यक्तिगत टिप्पणी से गुरेज़ करें, ओबीओ परिवार में यह स्वीकार्य नहीं है. 

प्रणाम सर ! अनुमोदन हेतु दिल से आभारी हूँ। सादर।

आदरणीय, भाई  योगराज प्रभाकर साहब,  मुझे पता नहीं किस प्रकार प्रश्नगत टीप  आदरणीय भाई  महेंद्र कुमार जी के  संदर्भ  में चला गया क्यों कि  जिस  साथी ने ( संभवत: आ. भाई मनन कुमार सिंह ) ने संवाद  की भाषा शैली को  लेकर  प्रश्न  किया था, उक्त जवाब उनको  सम्बोधित है । सादर 

आदरणीय चेतन प्रकाश साहिब, आपकी विषयानुकूल और विचारप्रेरक लघुकथा के लिए आपको हार्दिक बधाई। सादर

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