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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-92 (विषय: रोटी)

आदरणीय साथियो,

सादर नमन।
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-92 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार का विषय है 'रोटी', तो आइए इस विषय के किसी भी पहलू को कलमबंद करके एक प्रभावोत्पादक लघुकथा रचकर इस गोष्ठी को सफल बनाएँ।  
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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-92
"विषय: रोटी''
अवधि : 29-11-2022 से 30-11-2022 
.
अति आवश्यक सूचना:-
1. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी केवल एक लघुकथा पोस्ट कर सकते हैं।
2. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना/ टिप्पणियाँ केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड/नॉन इटेलिक टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
3. टिप्पणियाँ केवल "रनिंग टेक्स्ट" में ही लिखें, १०-१५ शब्द की टिप्पणी को ३-४ पंक्तियों में विभक्त न करें। ऐसा करने से आयोजन के पन्नों की संख्या अनावश्यक रूप में बढ़ जाती है तथा "पेज जम्पिंग" की समस्या आ जाती है। 
4. एक-दो शब्द की चलताऊ टिप्पणी देने से गुरेज़ करें। ऐसी हल्की टिप्पणी मंच और रचनाकार का अपमान मानी जाती है।आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। देखा गया कि कई साथी अपनी रचना पोस्ट करने के बाद गायब हो जाते हैं, या केवल अपनी रचना के आस पास ही मंडराते रहते हैंI कुछेक साथी दूसरों की रचना पर टिप्पणी करना तो दूर वे अपनी रचना पर आई टिप्पणियों तक की पावती देने तक से गुरेज़ करते हैंI ऐसा रवैया कतई ठीक नहींI यह रचनाकार के साथ साथ टिप्पणीकर्ता का भी अपमान हैI
5. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति तथा गलत थ्रेड में पोस्ट हुई रचना/टिप्पणी को बिना कोई कारण बताये हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
6. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका, अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल/स्माइली आदि लिखने/लगाने की आवश्यकता नहीं है।
7. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
8. आयोजन से दौरान रचना में संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य न होगा। रचनाओं का संकलन आने के बाद ही संशोधन हेतु अनुरोध करें। 
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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)

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Replies to This Discussion

सादर प्रणाम आदरणीया, क्या संस्मरण लघुकथा के अंतर्गत नहीं आ सकता , कृपया मार्गदर्शन करें। क्या कोई ऐसी लघुकथा लिखी जा सकती है जिसमें एक  व्यक्ति दूसरे को अपना संस्मरण सुनाए ?

आदरणीय यह मेरी लघुकथा है, इसलिये मैं इस पर कोई टिप्पणी या स्पष्टीकरण देना उचित नहीं समझता। बेहतर होगा कि कोई इस विधा का मर्मज्ञ इस पर अपनी मूल्यवान राय दे। सादर।

इस मंच पर हम सब लघुकथा के विद्यार्थी  हैं जो पिछले सात आठ वर्षों से आदरणीय योगराज जी के मार्गदर्शन में एक दूसरे से सीखते हुए इस विधा में प्रयासरत हैं। लघुकथा के शिल्प की एकरसता को दूर करने के लिये समय समय पर नये प्रयोग हो रहे हैं। आजकल कई नई शैलियां चर्चा और प्रयोग में हैं हैं। मेरे अनुसार संस्मरण भी एक शैली है/ हो सकती है अगर लघुकथा होने के मूलभूत बिन्दुओं के दायरे में हो। किसी दूसरे व्यक्ति को संस्मरण सुनाना भी हो सकता है। इसे किस्सागोई शैली भी कह सकते हैं जो आजकल काफी चर्चा में है

आपके प्रश्न का अपनी समझ के अनुसार उत्तर देने की कोशिश की है आदरणीया 

आद0 तेजवीर जी सादर अभिवादन। मज़ा आया पढ़कर। बधाई स्वीकार कीजिये

ओह आजकल आधुनिक परिवेश में चपातियों का गिन कर बनाया जाना और सबका अलग अलग कमरों में भी खाना अकेले खा लेना...
लेकिन नीचा न देखना पड़े इसलिए खामोश रह जाना... कितना बड़ा प्रश्नचिह्न है ग्लानि कहाँ होनी चाहिए और कहाँ है 

सुंदर कहानी 

बधाई स्वीकार करें आ० तेज वीर सिंह जी 

वाह। एक बहुत ही उम्दा सृजन विषयांतर्गत। निश्चित रूप से यह एक संस्मरणात्मक शैली की बढ़िया लघुकथा हो जाती यदि इसमें कालखण्ड दोष न होता और कुछ पंक्तियों/शब्दों को हटा दिया जाता।अर्थात इसमें से लगभग आठ-दस वाक्य कम किये जा सकते हैं लघु आकार की संस्मरणात्मक शैली की लघुकथा रूप स्पष्ट करने हेतु मेरे विचार से। (कृपया मेरा टिप्पणी अभ्यास मुहतरमा /स्वतंत्र लेखिका की टिप्पणी के जवाब में दी गई टिप्पणी भी पढ़िएगा।)

 मेरा एक अभ्यास जनाब तेजवीर सिंह जी की रचना पर, सादर विचारार्थ :

असमंजस   -  लघुकथा 

यह उन दिनों की बात है जब मैं गाँव में रह रहा था। 

मेरी एक प्रतियोगी परीक्षा का केंद्र पास के शहर में पड़ गया, जहाँ मैं अपने पिताजी के बताए अनुसार चाचाजी के घर रुका। पिताजी की हिदायत मुझे याद रही कि "वे लोग शहर के प्रतिष्ठित समुदाय में गिने जाते हैं। इसलिये ध्यान रखना कि ऐसी कोई बात ना हो कि हम लोगों को नीचा देखना पड़े।"

 चाचा जी का बेटा जो कि मेरा ही हम उम्र था, मुझे परीक्षा केंद्र भी दिखा लाया। घर का माहौल बहुत खुशनुमा था।चाचा, चाची, उनके तीन बच्चे और चाचा जी की माँ  थीं। कुल छह सदस्य थे। 

शाम को एक अजीब बात हुई। मैं प्रथम तल पर बने एक कमरे में, जिसे वे लोग गेस्ट रूम कहते थे, अपनी कल की परीक्षा की तैयारी कर रहा था । तभी चाचा जी की बड़ी बेटी आई,"भैया आप कितनी चपाती खाओगे?"

मेरे लिये यह एकदम अप्रत्याशित प्रश्न था।क्योंकि गाँव में हम लोग सदैव चूल्हे के सामने बैठ कर खाने वाले लोग इस तरह के प्रश्न के आदी ही नहीं होते।

मेरी हिचकिचाहट को भाँप कर उसने प्रश्न को थोड़ा संशोधित भाषा में दुहराया,"वो क्या है भैया जी, अभी खाना बनाने वाली आई है तो उसे बताना पड़ता है कि कुल कितनी चपाती बनेंगी।" 

मैं फिर भी असमंजस में था क्योंकि मुझे खुद भी ज्ञात नहीं था कि मैं कितनी चपाती खाऊँगा। क्योंकि कभी गिन कर खाई ही नहीं।उसने मुझे इस तरह दुविधा में देखा तो खुद ही निर्णयात्मक स्वर में कहा,"चार बोल दूँ?" 

मैंने भी खामोशी से सहमति में सिर हिला दिया।उसने आगे पूछा,"आप यहीं कमरे में खाना खायेंगे या सबके साथ डाइनिंग हॉल में?" 

मैं पुनः सोचने लगा। उसने खुद ही अपनी बात पूरी कर दी,"अगर हम लोग के साथ खाना हो तो सही आठ बजे नीचे हॉल में आ जाना। नहीं आओगे तो मैं आपकी थाली इधर ही दे जाऊँगी।"

मैं आठ बजे हॉल में पहुंच गया।

जब सब खाना खाने बैठे तो मैं चपाती का आकार देख सन्न रह गया। गाँव में तो पूड़ी भी इससे बड़ी होती है। एक बार सोचा कि बोल दूँ कि मैं तो और चपाती लूँगा लेकिन फिर मुझे पिताजी की हिदायत याद आ गई।

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