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# आदरणीय कपूर साहब
सुना था आप हैं ज्ञानी, समझकर काम करते हैं
ज़रा बतलायें किसने आपसे ऐसा कराया है।
वाऽऽह ! ख़ूब कहा …
आपकी ग़ज़लें पढ़ने की हमारी ललक हमें आपके ब्लॉग्स तक बार बार खींच ले जाती है …
यहां तरही में आपकी बेह्तरीन ग़ज़ल पढ़ कर भी हार्दिक ख़ुशी हुई …
आभार !
आदरणीय तिलक जी इस लाजवाब गज़ल के लिए ढेरों मुबारकबाद जो शेर मुझे बहुत पसंद आये उन्हें कोट करना चाहूँगा
जिसे कल बन्द कमरे में सुना था साजि़शें रचते
वही पूछा किया किसने यहॉं दंगा कराया है।
कभी हम तुम न बिछड़ेंगे, हमारी जि़द यही थी पर
ज़रा सी जि़द ने इस ऑंगन का बँटवारा कराया है।....गिरह बाँधने का बेहतरीन नमूना
हुआ है क्या नया ऐसा मुझे बतलाय कोई तो
किसी ने आज अरसा बाद मुँह मीठा कराया है।
मकते का शेर भी लाजवाब है
मदारी सा नचाता है, सदा बाज़ार को 'राही'
कभी उँचा उठाया है, कभी मंदा कराया है।
बहुत बहुत बधाई|
जिसे कल बन्द कमरे में सुना था साजि़शें रचते
वही पूछा किया किसने यहॉं दंगा कराया है।
वाह वाह
कभी हम तुम न बिछड़ेंगे, हमारी जि़द यही थी पर
ज़रा सी जि़द ने इस ऑंगन का बँटवारा कराया है।
लाजवाब गिरह बांधी है मज़ा आ गया
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