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परम स्नेही स्वजन,
पिछले दिनों भीषण सर्दी पड़ी और कुछ इलाके तो अभी भी उसकी चपेट में है, इस सर्दी का असर महाइवेंट पर भी दिखा| परन्तु अब मकर संक्रांति के बाद तापमान में बढ़ोत्तरी की आशा है और OBO के आयोजनों में भी रचनाओं और टिप्पणियों में बढ़ोत्तरी की आशा है| तो पिछले क्रम को बरकरार रखते हुए प्रस्तुत है जनवरी का लाइव तरही मुशायरा| गणतंत्र दिवस सन्निकट है, इसी को मद्देनज़र रखते हुए इस बार का तरही मिसरा देश प्रेम की भावना से ओत प्रोत है और बहर भी ऐसी है की जो जन जन से वास्ता रखती है, राम प्रसाद बिस्मिल की "सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है"  वाली बहर पर प्रस्तुत है इस माह का तरही मिसरा

"देश के कण कण से और जन जन से मुझको प्यार है"

दे श के कण,  कण से और(औ) जन,  जन से मुझ को, प्या  र है
२ १ २ २        २   १    २    २                    २   १ २ २     २   १ २

फाइलातुन     फाइलातुन                  फाइलातुन     फाइलुन 
बहर है -बहरे रमल मुसमन महजूफ

नियम और शर्तें पिछली बार की तरह ही हैं अर्थात एक दिन में केवल एक ग़ज़ल और इसके साथ यह भी ध्यान देना है की तरही मिसरा ग़ज़ल में कहीं ना कहीं ज़रूर आये| ग़ज़ल में शेरों की संख्या भी इतनी ही रखें की ग़ज़ल बोझिल ना होने पाए अर्थात जो शेर कहें दमदार कहे|
मुशायरे की शुरुवात दिनाकं २१ Jan ११ के लगते ही हो जाएगी और २३ Jan ११  के समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा|

फिलहाल Reply बॉक्स बंद रहेगा, मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ किया जा सकता है |

"OBO लाइव तरही मुशायरे" के सम्बन्ध मे पूछताछ

 इस गाने को सुनिए और बहर  को पहचानिए|

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bahut badhiya
मित्रों!
वन्दे मातरम.
प्राथमिक कक्षा के विद्यार्थी और शोध छात्र की प्रविष्टि को एक आधार पर परखना सही होगा क्या? प्रथम की कुछ त्रुटियों की अनदेखी कर उत्साहवर्धन तथा दूसरे की तनिक सी भी भूल को इंगित कर शत-प्रतिशत की आशा करना क्या गलत कहा जाएगा? आप इस मंच के अपरिहार्य अंग हैं. पाठक अपनी बात कहे... रचनाकार विचारकर ठीक लगे तो स्वीकारे अन्यथा भूल जाए... मुझे यहा सही नीति लगती है.

बहुत अच्छी गज़ल

बधाई स्वीकार करें

आदरणीय शेषधर तिवारी ji

सबसे पहले तो आप अपना ध्यान दे और जल्दी से स्वस्थ हों|

बहुत ही ख़ूबसूरत और नायाब शेरों से सजी हुई यह ग़ज़ल अनायास ही विवादों में आ फंसी| हर ग़ज़ल में कुछ अच्छाईयां और कुछ खामिया होती हैं| आदरणीय मयंक जी की आज्ञा को शिरोधार्य करते हुए जो शेर मुझे बहुत पसंद आये उन्हें कोट करना चाहूँगा|

खून की हर बूँद बहने के लिए तैयार है
देश के जन जन से औ कण कण से मुझको प्यार है

कमाल की गिरह बंधी है, सर्वस्व अर्पण करने की भावना से बड़ा क्या हो सकता है ..बहुत khoob


वो रहा करते खफा मुझसे इसी इक बात से
हर किसी का क्यूँ हमारे दिल पे यूँ अधिकार है

एक नाला जब मिला करता नदी से साल में
बारिशों की याद में रहता पडा बीमार है

प्रतीकों के माध्यम से कही गई गहरी bat

बारहा आँखों को धोने से तो कुछ होगा नहीं
छुप गयी पर यूँ न रुकती आंसुओं की धार है

 

फूल का शव देख कर इक सिहर जाती है कली
जिन्दगी बस मौत का चलता सा कारोबार है

 

बहुत बहुत बधाई| स्नेह बनाये रखें|

 

 

जीवन के विविध और समृद्ध रंग है आपकी गज़ल में शेष जी |आपकी वरिष्ठता का आभास देती रचना | तरही को आपने अदभुत ऊँचाई दी | बहुत खूब !!! मैं छोटा हूँ और इस एह्सास के साथ आपका स्नेह मुझे चाहिए दाद क्या दूं खुद को काबिल नहीं समझता |

खून की हर बूँद बहने के लिए तैयार है
देश के जन जन से औ कण कण से मुझको प्यार है

 

shaandar prastuti tiwari bhaiya....dil khush ho gaya padh kar....

क्या बात है तिवारी जी एक एक शे’र शानदार है। हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए।

ओ. बी. ओ. परिवार को मेरी नमस्ते 

मैंने सोचा था आज कुछ और शेर लिख कर गज़ल पोस्ट कर दूंगा मगर व्यवसायिक व्यस्तता के कारण लिखने का समय ही नहीं मिल सका,

कल तक तीन शेर लिख चूका था वही पोस्ट कर रहा हूँ , तीन शेर की गज़ल तो होती नहीं,  बस आप ६ मिसरे समझ कर पढ़ लीजिए :)

 

इक समंदर पार है, इक जाने को तैयार है,

और दोनों सोचते हैं सारा सुख उस पार है |

 

बढती मंहगाई के मुद्दे पर बहस की आड़ में,

काले धन पर "मौन" दोनों पक्ष को स्वीकार है |

 

साल के दो दिन सभी गाते हैं कितने शौक से,

देश के कण कण से और जन जन से मुझको प्यार है |

 

- वीनस 

बढती मंहगाई के मुद्दे पर बहस की आड़ में,

काले धन पर "मौन" दोनों पक्ष को स्वीकार है |   

बहुत खूब लिखा वीनस भाई ...........क्या बात है .......

 

दूसरा शेर कितना सटीक और सामयिक लिखा है तुमने कि हैरत में हूं वीनस...खासकर मिस्रा-सानी के लिये ढ़ेरम-ढ़ेर दाद कबूल फरमाओ....बहुत अच्छे!
शुक्रिया शुक्रिया 
कोशिश करूँगा अगर आज कुछ और शेर बन पाए तो कल पोस्ट करूँगा

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