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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
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शाम ढले इस सूने घर मे मेला लगता है.....
मिट्टी के टूटे घरों में प्यार अभी पलता है,
जिनके आगे ताजमहल भी फीका लगता है.....
bahut khoob .....!!
वाह वाह हरजीत साहिब , बेहद खुबसूरत ख्यालात है , ग़ज़ल के प्राथमिक शिल्प पर भी खरा , जैसा की और साथी लोग कहे है कहन सही हो तो शेष नियम धीरे धीरे सिखा जा सकता है ,
मुझे आपके सभी शे'र अच्छे लगे , बधाई स्वीकार कीजिये इस खुबसूरत अभिव्यक्ति पर |
मिट्टी के टूटे घरों में प्यार अभी पलता है,
जिनके आगे ताजमहल भी फीका लगता है.....
waah waah...bahut hi badhiya sher... badhai aapko.. Harjeet ji...
आज वफ़ा भी हवस की छत पर सज के बैठी है,
इसको हासिल करने ज़ेब में पैसा लगता है।
वाह वाह संजय भईया , मजा आ गया , एक बार पुनः आपने बेहद खुबसूरत शे'रों के साथ शिरकत किया है ,
दिल की ख़्वाहिश, राह तकूं ताउम्र सितमगर की ,
तेरे वादों का झूठ मुझे प्यारा लगता है। वाह वाह , सबकुछ जान कर भी अपने को खुशफहमी में रखना , उम्द्दा कारीगरी ,
तारीफ़ किसी की करने में दिल का धन लुटता,
बदनाम किसी को करने में ढेला लगता है। सच्ची बात भईया , इतना बुलंदी से अपनी बात कहना सबके बस की बात नहीं ,
बहुत बहुत बधाई इस बेहतरीन ग़ज़ल के लियें |
सिगरेट शराब चिलम से दिल ऊब चुका दानी
अब तो स्वादिष्ट मुझे बिहारी खर्रा लगता है।
): ):
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