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गर्मी के महीनागर्मी के महीना में हमरा मन में इ बात उठेला कि हमनी का काहे ना हिल स्टेषन में पैदा भइली जां। ओहिजा हमनी का ना जायेके पड़ीत। एहिजे ठंडा के मज… Started by indravidyavachaspatitiwari |
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Jul 22, 2016 Reply by KALPANA BHATT ('रौनक़') |
शराबबंदीमरदे! उ काहे गभुआइल बा लागता उ तनी भकुआइल बा। ठंढा पानी से पिआस जाई का? उ बोतल खातिर छुछुआइल बा। शराबबंदी के एलान का भइल ताड़ी तनी अधिके बउर… Started by Manan Kumar singh |
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Jun 16, 2016 Reply by Manan Kumar singh |
नवगीत - मोहित मिश्रापियवा गइलें परदेश राह ताकत बाडी सूनी अँखियाँ, बन गइले विधवा के भेष, पियवा गइलें परदेश। कह के त गइलें सैया कुछ दिन के काम बा, थोडे दिन के… Started by Mohit mishra |
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May 19, 2016 Reply by Pawan Kumar |
शाकाहारी स्वागत-भोजपुरी कवितापाहुन जी चली मुँह हाथ धोइ गोड़ सोड़ पोंछी राउवे खातिर बनवले बानी करी बरी फुलौरी आ मोछी भात दाल आ तरकारि बा आलू कटहल के आम के चटनी भुजिया च… Started by Mohit mishra |
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Mar 27, 2016 Reply by Mohit mishra |
होली में (ग़ज़ल)2122 1212 22 थम गइल बा किचाल होली में हर तरफ बा बवाल होली में बूढ़, लइका,जवान,मेहरारू सबके बदलल बा चाल होली में बाटे के दोस्त अउर के दुश्… Started by जयनित कुमार मेहता |
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Mar 25, 2016 Reply by Shyam Narain Verma |
गजल(मनन)आईं एगो गजल भइल बा देखीं सब रउए कइल बा।1 हहरल हियरा रउए खातिर इचिको ना एमे मइल बा।2 नयन मटक्का करते करते जिनगी के हर रोज गइल बा।3 खेले ख… Started by Manan Kumar singh |
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Mar 15, 2016 Reply by Manan Kumar singh |
गजल(मनन)मेल बढाईं बात बनी सब झगड़ा में अब का धइल बा। आज तिलंगी उड़ते उड़ते देखीं रउए पास गइल बा। टूट सकी का धागा कबहूँ ? रउए माँझा जोर कइल बा। Started by Manan Kumar singh |
0 | Mar 7, 2016 |
गजल(मनन)अइसन मौसम आइल बा मनवा अब फगुआइल बा।1 खिल रहल बा कली गुलाबी भौंरा खूब अगराइल बा।2 टहले के मिलल तब निमन नाहीं तब गभुआइल बा।3 कर रहल मनुहार… Started by Manan Kumar singh |
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Feb 28, 2016 Reply by Manan Kumar singh |
जाड़ा बीतल,बसंत आइल (बसंत ऋतु पर भोजपुरी गीत)जाड़ा बीतल,बसंत आइल। सब प्राणी के मन हर्षाइल।। हरियर बा धरती के आँचल, सुरुज देवता अइलन माकल, सभे रजाई छोड़ के भागल, चर-फर बा,देहिया अलसाइल।… Started by जयनित कुमार मेहता |
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Feb 18, 2016 Reply by Shyam Narain Verma |
ओ, दसरथ माँझी !ओ ! दसरथ माँझी, ओ ! दसरथ माँझी जियरा तू पोढ़ कइलो दसरथ माँझी | जाना उस पार बीचे बाटै पहाड़ काटौ पाथर-गरब अपार हाथ-गोड़ लोह कइलो दसरथ माँझी… Started by Santlal Karun |
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Feb 14, 2016 Reply by Santlal Karun |
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