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आदरणीय काव्य-रसिको !

सादर अभिवादन !!

  

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह एक सौ बासठवाँ योजन है।.   

 

छंद का नाम -  छंद मनहरण घनाक्षरी 

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

21 दिसंबर’ 24 दिन शनिवार से

22 दिसंबर’ 24 दिन रविवार तक

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.  

मनहरण घनाक्षरी छंद के मूलभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.

*********************************

आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -

21 दिसंबर’ 24 दिन शनिवार से 22 दिसंबर’ 24 दिन रविवार तक  रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं। 

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मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम  

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Replies to This Discussion

वाह वाह .. वाह वाह ... 

आदरणीय अशोक भाईजी, आपके प्रयास और प्रस्तुति पर मन वस्तुतः झूम जाता है. जिस निर्विघ्न प्रवाह के साथ पदों में शब्द-संय़ोजन हुआ है, यही घनाक्षरी जैसे छंद की विशेषता है. 

प्रस्तुति के पहले दोनों पद जहाँ प्रदत्त चित्र की भावभूमि को उकेर रहा है, वहीं बाद के दोनों पदों में चित्र की प्रक्रिया निरुपित हुई. और क्या ही निरुपण है ! वाह वाह .. 

हार्दिक बधाइयाँ, आदरणीय 

आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, आपकी प्रतिक्रिया से प्रतीत होता है मेरा यह प्रयास ठीक रहा. मेरा प्रयास था गलती की पुनरावृत्ति से बचने का उसमें मैं सफल रहा. आपका हार्दिक आभार. सादर 

आपका छांदसिक प्रयास मुग्धकारी होता है। 

आदरणीय अशोक भाईजी, 

छंद की हर पंक्ति चित्र के अनुरूप है, हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति के लिए |

आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रस्तुत घनाक्षरी की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. सादर 

वाह..बहुत ही सुंदर भाव,वाचन में सुन्दर प्रवाह..बहुत बधाई इस सृजन पर आदरणीय अशोक जी

आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। चित्रानुरूप सुंदर छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।

मनहरण घनाक्षरी

_____

निवृत सेवा से हुए, अब निराली नौकरी,बाऊजी को चैन से न, बैठने दें पोतियाँ

माँगतीं वह रोज हैं, कहानियों की टोकरी,जान से प्यारी मगर, बाऊजी को पोतियाँ

कभी-कभी तो प्रश्न भी, बड़े अजीब पूछतीं, क्या सुनाऊँ अब इन्हें, बाऊजी हैं सोचते

 बड़ों के पास हो गई, कमी बड़ी ही वक्त की, शुष्कता व्यवहार की, बाऊजी हैं भोगते

______

मौलिक व अप्रकाशित 

अंतिम दो पदों में तुकांंत सुधार के साथ 

_____

निवृत सेवा से हुए, अब निराली नौकरी,बाऊजी को चैन से न, बैठने दें पोतियाँ

माँगतीं वह रोज हैं, कहानियों की टोकरी,जान से प्यारी मगर, बाऊजी को पोतियाँ

कभी-कभी तो प्रश्न भी, बड़े अजीब पूछतीं, हैं बड़ी चतुर सुनो, बाऊजी की पोतियाँ

 बड़ों के पास हो गई, कमी बड़ी ही वक्त की, शुष्कता व्यवहार की, देखती हैं पोतियाँ

आदरणीया प्रतिभाजी

इस प्रयास के लिए हार्दिक बधाई|

तुकांत की दृष्टि से सभी पदों में  पोतियाँ के पूर्व वो  शब्द होना चाहिए जिसमें  आपस में तुकांतता हो| 

हार्दिक आभार आदरणीय अखिलेश जी। तुकांत में हुई असावधानी की आगे के अभ्यासों मे पुनरावृति न हो ऐसी कोशिश रहेगी..सादर

आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, अच्छा प्रयास है आपका घनाक्षरी पर. भाव चित्रानुरूप सुन्दर हैं किन्तु तुकान्त कहाँ हैं?

बैठने दें पोतियाँ 

बाऊजी को पोतियाँ 

पाऊजी को पोतियाँ 

देखती हैं पोतियाँ .......चारों ही चरणों में कोई तुक नहीं है.  

    अवश्य ही कुछ असावधानी रही है क्योंकि आपसे ऐसी गलती की तो कोई सँभावना नहीं है. चरणों की गेयता के लिए भी कुछ शब्दों का हेरफेर किया जाना बहतर होगा. सादर 

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