For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आदरणीय काव्य-रसिको !

सादर अभिवादन !!

  

’चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव का यह एक सौ सड़सठवाँ योजन है।.   

 

छंद का नाम  -  दोहा छंद  

आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ - 

17 मई’ 25 दिन शनिवार से

18 मई 25 दिन रविवार तक

केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जाएँगीं.  

दोहा छंद के मूलभूत नियमों के लिए यहाँ क्लिक करें

जैसा कि विदित है, कई-एक छंद के विधानों की मूलभूत जानकारियाँ इसी पटल के  भारतीय छन्द विधान समूह में मिल सकती हैं.

*********************************

आयोजन सम्बन्धी नोट 

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ -

17 मई’ 25 दिन शनिवार से 18 मई 25 दिन रविवार तक  रचनाएँ तथा टिप्पणियाँ प्रस्तुत की जा सकती हैं। 

अति आवश्यक सूचना :

  1. रचना केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, अन्य सदस्य की रचना किसी और सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी.
  2. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
  3. सदस्यगण संशोधन हेतु अनुरोध  करें.
  4. अपने पोस्ट या अपनी टिप्पणी को सदस्य स्वयं ही किसी हालत में डिलिट न करें. 
  5. आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति संवेदनशीलता आपेक्षित है.
  6. इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं.
  7. रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. 
  8. अनावश्यक रूप से रोमन फाण्ट का उपयोग  करें. रोमन फ़ॉण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.
  9. रचनाओं को लेफ़्ट अलाइंड रखते हुए नॉन-बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें. अन्यथा आगे संकलन के क्रम में संग्रहकर्ता को बहुत ही दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

छंदोत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...


"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ

"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...

विशेष यदि आप अभी तक  www.openbooksonline.com  परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें.

 

मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम  

Views: 639

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

छिपन छिपाई खेलता,सूूरज मेघों संग।

गर्मी के इस बार कुछ, नर्म लग रहे रंग।।
--
पथिक थका रवि से कहे, मत कर इतना काम।
बादल को तू ओढ़कर, कर ले कुछ आराम।।
----
मौसम कभी सुहावना,कभी बढ़ रहा ताप।
बिन पानी के धूप में,कभी न निकलें आप।।
---
सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़।
गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।
--
चलता जा रे ओ पथिक,दूर बहुत है गाँव।
कहाँ बचे हैं पेड़ अब,जो तू ढूँढे छाँव।।
--
अब तो घर- घर आ गया, पानी बोतलबंद। 
उँटनी भी कहने लगी, इसको सेहतमंद। ।
---
पानी उसका रोककर, हम करते एलान। 
नहीं रक्त के साथ जल, दुश्मन ले यह जान।।
___
मौलिक व अप्रकाशित 
 

आह और वाह आदरणीया प्रतिभा जी। चित्र को एक अलग ही ऊंचाई प्रदान की है आपने अपने शब्दों से।

प्रकृति के, व्यावसायिकता के, परंपराओं के, देशभक्ति के, कितने ही रूप प्रस्तुत किये आपने। बहुत उत्तम। 

उँटनी भी कहने लगी, इसको सेहतमंद// ""उँटनी"" क्या सही शब्द है, जानना रोचक होगा। बहरहाल इसे "ऊँटनी भी कह रही"/ "ऊँट भी कहने लगे" आदि से इसे बदला जा सकता है।

पुनः बधाई आपको

 सराहना और मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय अजय जी।टीवी के एक विज्ञापन से प्रेरित है वह पंक्ति जहाँ एक ऊँटनी अपने बच्चे को सादा पानी नहीं पीने देती और दुकान से बिसलेरी उठा लेती है।शब्द की वर्तनी पर मुझे भी संदेह था पर मंच पर मार्गदर्शन के लिये चांस ले लिया।आपके कहे अनुसार कुछ सोचती हूँ।

जी बिल्कुल संदर्भ समझ आ गया था। और आपने जैसे उसे दोहे में प्रयोग किया वो काफ़ी पसंद भी आया। मेरा भी संशय वर्तनी को लेकर ही रहा।

सादर

छिपन छिपाई खेलता,सूरज मेघों संग।

गर्मी के इस बार कुछ, नर्म लग रहे रंग।। -- प्रदत्त चित्र पर क्या खूब खयाल प्रस्तुत किया आपने।

--

पथिक थका रवि से कहे, मत कर इतना काम।

बादल को तू ओढ़कर, कर ले कुछ आराम।।... वाकई हर बार मौसम से लड़ना सही नहीं, अच्छा दोहा है।

----

मौसम कभी सुहावना,कभी बढ़ रहा ताप।

बिन पानी के धूप में,कभी न निकलें आप।।... लोगों को समझाइश देता दोहा, बहुत खूब

---

सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़।

गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।.... ये आपने लाख रुपये की बात कही है, लिम्का कोला शक्कर पानी के अलावा कुछ नहीं, जो फायदा कम नुकसान ज्यादा देते हैं।

--

चलता जा रे ओ पथिक,दूर बहुत है गाँव।

कहाँ बचे हैं पेड़ अब,जो तू ढूँढे छाँव।।.... एक दुःखद सच्चाई को आपने इस दोहे के माध्यम से उभारा है। लोग देखकर भी इस तथ्य को अनदेखा कर रहे हैं।

--

अब तो घर- घर आ गया, पानी बोतलबंद।

उँटनी भी कहने लगी, इसको सेहतमंद।। .... पानी के व्यवसायीकरण पर अच्छा दोहा हुआ है,

---

पानी उसका रोककर, हम करते एलान।

नहीं रक्त के साथ जल, दुश्मन ले यह जान।।.... बहुत खूब, अच्छा सामयिक दोहा है।

 

आदरणीय प्रतिभा पांडेय जी, प्रदत्त चित्र पर अच्छी रचना हुई है। सादर बधाई आपको

आदरणीय शिज्जू शकीर जी

हर एक दोहे पर समीक्षात्मक टिप्पणी  सराहना और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार स्वीकार करें

आदरणीया प्रतिभा जी।
सार्थक सुंदर दोहावली की हार्दिक बधाई।

छिपन छिपाई खेलता,सूूरज मेघों संग।

गर्मी के इस बार कुछ, नर्म लग रहे रंग।।..... पूरे भारत का यही हाल है।

अब तो घर- घर आ गया, पानी बोतलबंद। 

देख समझकर पीजिए, कितना सेहतमंद??

आदरणीय अखिलेश जी

उत्साहवर्धन करती टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार 

आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई। 

'कहे ऊँटनी भी जिसे, अब तो ...

ऐसा करने से दोष दूर हो जाएगा। सादर

सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़।
गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से बेहतर क्या हो सकता है धूप से बचाव के लिए. जो शरीर के लिए हानिकारक हों ऐसे पदार्थ कुछ पल को ठंडक दे सकते हैं किन्तु उसका क्या लाभ. 
आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रदत्त चित्र अनुसार सुन्दर दोहावली रची है आपने. हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर 

दोहा छंद

गर्मी में है वायरल, नया नवेला ट्रेंड।
प्यास कहे बोतल सुनो,तुम ही सच्ची फ्रेंड।।

पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।
आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।

देख पसीने में घुला, तन का सारा मैल।
टेढ़ी नज़रें मारता, सूरज है गुस्सैल।।

धरती की बहुएं हवा, सागर इसका सेठ।
सूरज ने बतला दिया, क्या होता है जेठ।।

खूब तपन समझा रही, क्या होता इज़हार।
अब तो ए.सी. में दिखा, अपना पावन प्यार।।

सूरज क्रोधित देखकर, हवा हुई नासाज।
अम्बर से गायब हुए, बादल डरकर आज।।

अमराई ने थाम ली, तीखी धूप कटार।
छांव पसीना पोंछने, लाई तनिक बयार।।

फ्री के प्रेमी लीजिए, पग से लेकर माथ।
सूरज खुद देने लगा, फ्री का सौना बाथ।।

मौलिक एवं अप्रकाशित

क्या बात है मिथिलेश भाई, बहुत रोचक दोहे। चेहरे पर बरबस एक मुस्कान आ गई।

जेठ ने तो मज़ा बाँध दिया। अब 'श्लेष अलंकार' के उदाहरण में यही बताया जाएगा।

बहुत बहुत बधाई आपको।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"दोहों पर दोहे लिखे, दिया सृजन को मान। रचना की मिथिलेश जी, खूब बढ़ाई शान।। आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, प्रस्तुत दोहे चित्र के मर्म को छू सके जानकर प्रसन्नता…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई शिज्जु शकूर जी सादर,  प्रस्तुत दोहावली पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आर्ष ऋषि का विशेषण है. कृपया इसका संदर्भ स्पष्ट कीजिएगा. .. जी !  आयुर्वेद में पानी पीने का…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"   आदरणीय भाई लक्ष्मण धामी जी सादर, प्रस्तुत दोहों पर उत्साहवर्धन के लिए आपका हृदय से…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service