जय हिंद साथियो !
"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-24 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है |
ईश्वर या अल्लाह ने हम सभी में कोई भेद नहीं किया है अपितु सारे भेदभाव यहीं पर धर्म-मज़हब के ठेकेदारों ने किये हैं यह बात निम्नलिखित चित्र से एकदम स्पष्ट हो रही है ...... प्रस्तुत चित्र को ज़रा ध्यान से देखिये तो सही....... इस कुम्भ में हमारे कवि व शायर इब्राहीम जी कितनी श्रद्धापूर्वक हम सबकी गंगा मैया को अपनी पुष्पांजलि अर्पित कर रहे हैं.......श्री अम्बरीष श्रीवास्तव द्वारा इनसे जब पूछा गया कि गंगा स्नान कर के आप को कैसा लगा? तो यह साहब बोले ... "बस पूछिए मत....मेंरा तो गंगा से निकलने का दिल ही नहीं कर रहा था ज़नाब .....वास्तव में यहाँ पर मेरी तो हज ही हो गयी...." साथियों! इस चित्र से यह साबित हो रहा है कि एक सच्चा साहित्यकार कभी भी किसी प्रकार का भेद भाव नहीं करता आज के परिवेश में ऐसे ही साहित्यकारों की आवश्यकता है जो कि अपने कर्म व आचरण से से इस समाज का उचित दिशा निर्देशन कर कर सकें! अब आप सभी को इसका काव्यात्मक मर्म चित्रित करना है !
* चित्र श्री कैलाश पर्वत के सौजन्य से...
उपरोक्त अवसर पर श्री अम्बरीष श्रीवास्तव द्वारा गंगा तट पर रचित निम्नलिखित छंद इस चित्र पर एकदम सटीक बैठता है ....
कविता साधक आ गए, गंगा तेरे द्वार.
निर्मल मन पावन बने, आपस में हो प्यार..
आपस में हो प्यार, सुमेलित स्नेहिल धारा,
रहे हृदय में धर्म, सुखी हो विश्व हमारा,
पुण्यभूमि हो श्रेष्ठ, तेज छाये सम सविता.
हर रचना हो मंत्र, बँधे छंदों में कविता..
तो आइये, उठा लें अपनी-अपनी लेखनी, और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण, और हाँ.. आपको पुनः स्मरण करा दें कि ओ बी ओ प्रबंधन द्वारा यह निर्णय लिया गया है कि यह छंदोत्सव सिर्फ भारतीय छंदों पर ही आधारित होगा, कृपया इस छंदोत्सव में दी गयी छंदबद्ध प्रविष्टियों से पूर्व सम्बंधित छंद के नाम व प्रकार का उल्लेख अवश्य करें | ऐसा न होने की दशा में वह प्रविष्टि ओबीओ प्रबंधन द्वारा अस्वीकार की जा सकती है |
नोट :-
(1) 16 मार्च-13 तक तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा, 17 मार्च-13 से 19 मार्च-13 तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणी पोस्ट हेतु खुला रहेगा |
सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो, रचना मात्र भारतीय छंदों की किसी भी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है | हमेशा की तरह यहाँ भी ओबीओ के आधार नियम लागू रहेंगे तथा केवल अप्रकाशित एवं मौलिक सनातनी छंद ही स्वीकार किये जायेगें |
विशेष :-यदि आप अभी तक www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें|
अति आवश्यक सूचना :- ओ बी ओ प्रबंधन ने यह निर्णय लिया है कि "ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक-24 , दिनांक 17 मार्च से 19 मार्च की मध्य रात्रि 12 बजे तक तीन दिनों तक चलेगा जिसके अंतर्गत इस आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन पोस्ट अर्थात प्रति दिन एक पोस्ट दी जा सकेंगी, नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |
मंच संचालक
श्री अम्बरीष श्रीवास्तव
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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इड़ा पिंगला सुषुम्ना, संगम सी शुभ-देह ।...वाह गंगा यमुना सरस्वती को तीन नादियों के सामान प्रस्तुत करना ......आपकी
प्रभु चरणों में आत्मा, पाए शाश्वत नेह ।..........कल्पना को साधुवाद है रविकर जी
पाए शाश्वत नेह, गरुण से अमृत छलका ।
संगम से गम दूर, तीर्थ मनु बुद्धि-बल का ।..........बहुत खूब (बोल्ड की गयी पंक्तियों की मात्रा जांच लीजिये रविकर जी बुद्धी पढ़ना पड़ रहा है बुद्धि को )
कर मनुवा सत्संग, मिलें मदनारि-मंगला ।
कर पूजन तप दान, दर्श दें इड़ा-पिंगला.......
बहुत ही विशेष छंद ...हार्दिक बधाई
इड़ा पिंगला संग मे, मिले सुषुम्ना देह ।
बरस त्रिवेणी में रही, सुधा समाहित मेह ।
सुधा समाहित मेह, गरुण से कुम्भ छलकता ।
संगम दे सद्ज्ञान , बुद्धि में भरे प्रखरता ।
रविकर शिव-सत्संग, मगन-मन सुने इंगला ।
कर नहान तप दान, मिले वर इड़ा-पिंगला।
इंगला=पृथ्वी / पार्वती / स्वर्ग
इड़ा-पिंगला=सरस्वती-लक्ष्मी (विद्या-धन )
आदरणीय रविकर जी
सादर अभिवादन
मेरा ज्ञान बढ़ा
आभार
पार न पाऊँ आपका , क्या रचते हैं छंद
हतप्रभ हूँ मैं क्या कहूँ,शब्द शब्द मकरंद ||
सभी विद्वान गुणीजनों के सम्मुख अपनी यह त्रुटियों से भर पूर रचना रख रही हूँ.... कृपया इसे छंदों की कसौटी पर न रख इसे सिर्फ इसे मेरी इस छन्दोत्सव पर मेरी श्रद्धा समझियेगा .. मुझे छंदों के बारे में ज्यादा कुछ नहीं आता और मात्राएँ गिनना बहुत कठिन लगता है ... :) कुछ प्रयास करना चाहती थी ..पर मेरे लिए थोडा कठिन है .. चित्र को देख मेरे मन में कुछ भाव आये थे ... बस मैं अपने भावों को रख रही हूँ ..
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निशब्द तुम मौन असुवों के सैलाब संग
जीवनदायनी युगों से बही माते गंग |
पापियों को तारती रही बन अमृतधार
इंसान ने घोला उस मे कीचड़ का रंग|
बांधों ने रोकी जब उसकी अविरल धार
हाहाकार मचाती छेड़ी उसने भी जंग|
तोड़ मर्यादा, प्रचंड वेग से भरे हुंकार
न करो प्रदुषण का निर्लज्ज नृत्य नंग|
होती है लालिमा खून में, पानी प्यास का रंग
विस्तार दो सोच को मानव न रखो तंग|
घाट में देख मिलन जातियों व धर्म का
होले होले मुस्कुराई है आज माते गंग |................
छन्दोत्सव में आपका स्वागत है आदरणीया, नम्रता पूर्वक कहना है कि यह आयोजन केवल भारतीय छंदों पर आधारित रचनाओं के लिए ही है, छंद मुक्त रचना स्वीकार्य नहीं कर सकते ।
कुछ समय पश्चात् यह रचना हटा दी जाएगी ।
सादर ।
धन्यवाद ...इसे थोड़ी देर के लिए ही इस मंच में जगह मिली ,,,, मैं जरूर आगे सही लिख पाऊं ऐसा प्रयास करुँगी ... आप सभी से हमें सीखने को मिलता है... सादर ...
keep it up
...मैं जरूर आगे सही लिख पाऊं ऐसा प्रयास करुँगी...
पापियों को तारती रही बन अमृतधार
इंसान ने घोला उस मे कीचड़ का रंग|
bhaw-paksh lajwab haiडॉ नूतन डिमरी गैरोला
chhand-paksh bhi ho jayega
आप विश्वास मानिये डॉ. नूतन, इस मंच के करीब-करीब सभी सदस्यों ने शास्त्रीय छंदों पर यथोचित या सम्यक जानकारी यहीं, इसी मंच पर, आपस में जानकारियों के आदान-प्रदान से ही ली है, भले एक-दो जाने-अनजाने सदस्यों को छोड़ दिया जाय. वो सदस्य भी किसी एक या दो छंद की थोड़ी-बहुत जानकारी रखते थे.
आप थोड़ा प्रयास करें, देखिये काम सहज लगने लगेगा.
छंदों पर काम करने से आत्मसंतुष्टि और गर्व का अनुभव होता है. यहाँ मात्र भावना और भावुकता न हो कर उस सृजन का सुख है जहाँ अनुशासन और शिल्प का गठन परम आनन्द देता है. हम सृजनात्मकता में ’माँ’ होने का गर्व जीते हैं, आदरणीया.
शुभ-शुभ
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