हँसते हँसते आज विदाई देता है
बूढ़ी माँ को कौन दवाई देता है ...
पागल कर डाला है इस बीमारी ने
सन्नाटों में शोर सुनाई देता है ..
जब भी तेरी आँखों में आँखें डालूँ
मुझ को मेरा अक्स दिखाई देता है..
तेरी ज़ुल्फों की खुशबू के क्या कहने
गुलशन का हर फूल दुहाई देता है ....
जलता है शब भर जो दीपक, उस को खुद
सूरज आ कर ढेर बधाई देता है ....
ग़ज़ल के 4 अशआर
सन्नाटों पर खूब सितम बरपाती है
मेरे भीतर तन्हाई चिल्लाती है
संकल्पों के मन्त्र मैं जब भी जपता हूँ
मंज़िल मेरे और निकट आ जाती है
पूरी क्षमता से जब काम नहीं करता
मेरी किस्मत भी मुझ पर झल्लाती है
हर पल तुझ को याद किया करता हूँ मैं
याद विरह के दंशों को सहलाती है
मौलिक व अप्रकाशित ....
Posted on November 30, 2014 at 5:23pm — 9 Comments
बचो इस से कि ये आफत बुरी है
नशा कैसा भी हो आदत बुरी है
पतन की ओर गर जाने लगे हो
यकीनन आपकी संगत बुरी है
कि सिगरेट मदिरा गुटका या कि खैनी
किसी भी चीज़ की चाहत बुरी है
हमें मालूम है मरना है इक दिन
मगर इस मौत की दहशत बुरी है
कमाया है जिसे इज्ज़त गँवा कर
अजय अज्ञात वो दौलत बुरी है
मौलिक व अप्रकाशित
Posted on October 15, 2014 at 5:30pm — 3 Comments
अंधेरों को मिटाने का इरादा हम भी रखते हैं
कि हम जुगनू हैं थोडा सा उजाला हम भी रखते हैं
अगर मौका मिला हमको ज़माने को दिखा देंगे
हवा का रुख बदलने का कलेज़ा हम भी रखते हैं
हमेशा खामियां ही मत दिखाओ आइना बन कर
सुनो अच्छाइयों का इक खज़ाना हम भी रखते हैं
महकती है फिजायें भी चहक़ते हैं परिंदे भी
कि अपने घर में छोटा सा बगीचा हम भी रखते…
Posted on August 5, 2014 at 7:00am — 11 Comments
मालूम है कि सांप पिटारे में बंद है
फिर भी वॊ डर रहा है क्यूँ कि अक्लमंद है
.
ये रंग रूप, नखरे,अदा तौरे गुफ्तगू
तेरी हरेक बात ही मुझको पसंद है
.
ये दिल भी एक लय में धड़कता है दोस्तो
सांसो का आना जाना भी क्या खूब छंद है
.
सोचा था चंद पल में ही छू लूँगा बाम को
पर हश्र ये है हाथ में टूटी कमंद है
.
दुश्वारियों से जूझते गुजरी है ज़िन्दगी
अज्ञात फिर भी हौसला अपना बुलंद है
.
मौलिक एवं अप्रकाशित.
Posted on August 1, 2014 at 8:30pm — 10 Comments
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