For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

समीक्षा पुस्तक : टुकड़ा-टुकड़ा धूप (दोहा संकलन)

पुस्तक : टुकड़ा-टुकड़ा धूप (दोहा संकलन)

सम्पादक : रेखा लोढ़ा ‘स्मित’

सह-सम्पादक : वीरेंद्र कुमार लोढ़ा

मूल्य : रूपये 150/- मात्र

प्रकाशक : बोधि प्रकाशन,

सी-46, सुदर्शनपुरा इंडस्ट्रियल एरिया एक्सटेंशन,

नाला रोड, 22 गोदाम, जयपुर -302006

 

            दोहा एक ऐसा अर्ध-सममात्रिक छंद है जो अपने दो पदों की कुल अड़तालीस मात्राओं में ऐसी बड़ी-बड़ी बातें कह जाता है, जो कभी कोई जरूरी सन्देश होता है कभी कोई सीख होती है तो कभी किसी की सुन्दरता का वर्णन भी. किन्तु जो भी होता है वह दोहाकार के शब्द चयन और कहने के तरीके पर निर्भर करता है कि वह  दोहा पाठक के मन पर अपना कितना प्रभाव छोड़ेगा. कहा तो सदैव यही जाता है कि दोहा इस तरह रचा जाए की उसमें ‘घाव करे गंभीर’ वाली बात हो.

            श्रीमती रेखा लोढ़ा ‘स्मित’ द्वारा संपादित दोहा-संकलन “टुकड़ा-टुकड़ा धूप”, जिसमें १००-१०० दोहे प्रति दोहाकार लेकर सात दोहाकारों के सात सौ दोहे प्रकाशित हुए हैं. दोहा-संग्रहों, दोहा संकलनों में सतसई का एक विशेष चलन देखा गया है. शायद यही कारण रहा हो की इस संकलन में भी सात सौ दोहे रखे गए हों.

            संपादिका जी ने अपने सम्पादकीय में जिस तरह रचनाकारों का परिचय कराया है उससे ज्ञात होता है कोई नवीन रचनाकर है तो कोई दोहाकार के साथ व्यंगकार भी है कोई गीतकार और कोई लघु-कथाकार.  दोहा छंद हो या और कोई काव्य विधा रचनाकर की अन्य विधाएं उसकी रचनात्मकता पर अपना प्रभाव छोडती ही हैं और यही दोहा छंद में एक विविधता ला देती हैं. इस संकलन के भी प्रथम दोहाकार भँवर ‘प्रेम’  जो छंद के क्षेत्र में भले नवीन हों किन्तु आयुर्वेद चिकित्सा के क्षेत्र में एक सेवानिवृत्त अधिकारी हैं और जैसा मैंने कहा है दोहाकार की अन्य विधा का उसकी रचना पर प्रभाव अवश्य होता है तो यह भँवर ‘प्रेम’ जी के इस दोहे से सिद्ध भी होता है –

चाहो यदि खाना पचे, इतना रखना याद |

मत पीना पानी तुरत, तुम भोजन के बाद ||

यह एक उत्तम चिकित्सकीय सलाह भी है, क्योंकि भोजन के बाद तुरंत पानी पीने से पाचन-क्रिया बाधित होती है. यह एक ही नहीं इसी मिज़ाज के और भी दोहे उन्होंने रचे हैं इस संकलन केलिए

शीतल जल हो स्नान का, पहले धोना पैर | पीना का जल गुनगुना नहीं रोग की खैर ||

और

अपच कभी हो आपको, कर लो जल उपवास | सबसे सरल उपाय है , रखना यह विश्वास ||

पुस्तक के दूसरे दोहाकार हैं जी.पी. पारिक जी इनका एक दोहा-संग्रह मैं पहले भी पढ़ चुका हूँ. इनके दोहों से इनके आध्यात्म की और झुकाव का प्रमाण सहज ही मिलता है. इनके अधिकाँश दोहे हमें परमात्मा की ओर ले जाते हैं.

बालक है ये मन बड़ा, भाग रहा चहुँ ओर |

सही समझ से बाँधिए, ले सुमिरन की डोर ||

इस दोहे से दोहाकार का सीधा इशारा चंचल चपल मन को नियंत्रित रखने की ओर है और ईश्वर भक्ति इसका उत्तम मार्ग है यह भी उन्होंने इस दोहे में बताया है.

जतन बड़ा तन प्यास का, बुझा रहे हैं प्यास | करिए प्रभु की बंदगी, जगे मिलन की आस ||

दुनिया चाहे घूम लो, हो अपनों का साथ | हर्ष प्रेम सुख वास हो, सहज सरल सब पाथ ||

सूरज का सिंदूर ले, लिया धरा से धीर | सागर से विस्तार ले, नारी सहती पीर ||

            इस संकलन की तीसरी दोहाकार हैं ज्योत्सना सक्सेना जी जो किसी फिल्म के लिए गीतकार भी रह चुकी हैं. इनके दोहों में राजनीति का रंग है तो श्रृंगार, भक्ति और रिश्ते-नाते पर भी चिंतन है.नारी जो माँ है उसे बेटियों की चिंता होना एक स्वाभाविक बात है और यह ज्योत्सना जी के दोहों में भी देखने मिलता है.

नहीं पराई बेटियाँ, कहते सारे शोध |

दिल से अपना मान लो, ऐसा है अनुरोध ||

आज के दौर में जहाँ आये दिन बहुओं को तरह-तरह के कारण बताकर प्रताड़ित किया जा रहा है, यहाँ तक की कई बार ह्त्या तक कर दी जाती है. तब उपरोक्त दोहा बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है. क्योंकि बेटियाँ सभी के परिवार में होती हैं और उनको ब्याहकर किसी अन्य परिवार का हिस्सा बनना है. यदि नया परिवार उस बेटी को अपनी बेटी की तरह अपनाएगा तो वह भी उस परिवार के लिए उतना ही समर्पण भाव रखेगी. ज्योत्सना जी के अन्य दोहे कुछ इसप्रकार हैं .

माटी जैसी ही दिखे, काया की पहचान | साँसें कच्ची डोर हैं, कच्चे घट सी जान ||

मणिमुक्ता नयनों झरे, रहे होंठ पर मौन | मन वीणा के तार को, छेड़ गया है कौन ||

            दोहा-संकलन के चौथे दोहाकार हैं नरेंद्र दाधीच जी. जो कि दोहाकार होने के साथ-साथ एक प्रसिद्द गीतकार भी हैं. इनके अधिकाँश दोहे प्रकृति के इर्द-गिर्द घुमते हुए बहुत नाजुक कलम से रचे गए लगते हैं, किन्तु वहीँ वीरों की भूमि राजस्थान के वीरों के  शौर्य का गुणगान करने के लिए उतनी ही सख्ती भी दिखालाई देती है.

नारी पन्ना सी बने, आँसू गिरे न एक |

निज सूत को भी वार दे, सहती कष्ट अनेक ||

पन्ना धाय की वीरता और त्याग की गाथा से कौन परिचित न होगा. कविवर अपने दोहे से प्रत्येक नारी को उसी प्रकार वीर और बलिदानी होने का सन्देश दे रहे हैं. इनके अन्य दोहे भी उतने ही मनमोहक हैं.

माँ चन्दा की चाँदनी, माँ चन्दन सी शीत | माँ मृदंग की थाप है, माँ लोरी का गीत ||

मधुमक्खी ने कर लिया, फूलों का रसपान | बूँद-बूँद मधु जोड़कर, किया जगत को दान ||

प्रहलाद पारीक जी एक दोहाकार होने के साथ ही साथ उत्तम व्यंगकार भी हैं.’टुकड़ा-टुकड़ा धूप’ में इनके दोहे पांचवे नंबर पर रखे गए हैं . प्रहलाद जी चूंकि व्यंगकार हैं तो उनकी शासन के कार्यों और आज के दौर की विसंगतियों पर पैनी नजर होगी ही. यही उनके दोहे भी कह रहे हैं.

ज्यादा झुकना छोड़ दे, खा जाएगा मात |

हंटर रख ले हाथ में, होगी तब कुछ बात ||

स्पष्ट सी बात है आज का समय अत्याधिक विनम्रता दिखाने का समय नहीं है. अपने कार्य सिद्ध करने के लिए विनम्रता के साथ ही आपके पास एक ऐसी शक्ति भी आवश्यक है जो सामने वाले पक्ष को भयभीत करता हो. अन्य दोहों में भी दोहाकार ने अपनी बात सीधे ही कहने का प्रयास किया है.

खूब दुकानें खुल चुकीं, सबको भारी ज्ञान | मठाधीश करने लगे, खुद का ही सम्मान ||

गीत गजल सब कह रहे, अपनी-अपनी सोच | तू भी अपनी बात कह, मत बालों को नोच ||

‘टुकड़ा-टुकड़ा धूप’ की सम्पादक रेखा लोढ़ा ‘स्मित’, जिनका एक दोहा-संग्रह और गीत संग्रह आदि पूर्व में प्रकाशित हो चुके हैं, ने स्वयं के दोहों को पुस्तक में छठवें नम्बर पर स्थान दिया है.  दोहा छंद उनकी प्रमुख काव्य विधा है रेखा जी आज एक प्रतिष्ठित दोहाकार हैं. दोहा छंद पर चलती उनकी कलम सहजता से बिम्बों का आधार लेकर अपनी बात को दोहों के माध्यम पाठक तक  पहुँचाती है.

झाड़ कँटीले उग गए, मन के आँगन आज |

कैसे भावों पर सजें, अब फूलों के ताज ||

आज के इस भौतिकतावादी युग ने जहाँ रिश्ते-नातों से अधिक निज स्वार्थ का पोषण किया है. उसके कारण प्रत्येक व्यक्ति का मन दूषित हो गया है. ऐसे में चाहकर भी किसी के प्रति निर्मल भाव मन में ला पाना असंभव सा प्रतीत होता है. यही बात अपने दोहे में रेखा जी ने काँटे और फूलों को प्रतीक बनाकर कही है. इस संकलन में उनके अधिकाँश दोहे परिवार और समाज के कष्टों को आधार बनाकर रचे गए हैं.

मसल-मसल कर फेंक दी, नन्ही कालिका आज |त्रिभुवन पर होने लगा,अब रति पति का राज ||

मोबाइल ने छीन ली, रिश्तों से पहचान | अहसासों को छोड़कर, आभासों को मान ||

दोहा-संकलन के अंतिम दोहाकार के रूप में शकुन्तला अग्रवाल ‘शकुन’ जी के दोहों को स्थान मिला है. संकलन में दोहों को अंतिम स्थान मिलने का अर्थ यह  बिलकुल भी नहीं है कि उनके दोहे किसी अन्य दोहाकार के दोहों से कमतर हों. किसी न किसी के दोहों को तो अंत में स्थान पाना ही था. इनका स्वयं का एक दोहा-संग्रह प्रकाशित हो चुका है जबकि कई संकलनो में इनके दोहे प्रकाशित हुए हैं.

प्रस्तुत पुस्तक में इनके दोहों के प्रमुख विषय है प्रेम, पंछी, प्रकृति, परिवार और परमात्मा.

छेड़े मीठी तान जब, कोयलिया के गीत |

हम सबका नव वर्ष तो, तब आयेगा मीत ||

अंग्रेजी नव वर्ष पर शोर-शराबा करते युवाओं और उत्साहीजनों को उलाहना देता और सत्य से परिचित कराता यह दोहा पाठक को इस बात से भी परिचित कराता है की भारत में नव वर्ष वह होता है जब सारी प्रकृति नवीन परिधान पहने नजर आती है. वह ठण्ड से ठिठुरता मौसम नहीं होता. अन्य दोहे भी शकुन जी ने इतने ही सुन्दर रचे हैं.

अमरबेल सा नित बढे, खुदगर्जी का रोग | मन से मन के मेल का, कैसे हो संजोग ||

जग में पढता कौन अब, प्रेम भरे अध्याय | लगे गटकने हम सभी, धन-दौलत की चाय ||

            इस संकलन की भूमिका वीरेंद्र कुमार लोढ़ा जी ने लिखी है. पुस्तक के मुख-पृष्ठ पर उनका नाम सह-संपादक के रूप में भी लिखा है. सम्पादक द्वारा अपने सम्पादकीय में उनके विषय में कुछ लिखा नहीं है किन्तु वीरेंद्र जी सह-सम्पादक हैं तो अवश्य ही उन्होंने भी पुस्तक के सम्पादन में महत्वपूर्ण योगदान दिया होगा.

कुल मिलाकर “टुकड़ा-टुकड़ा धूप” आज के समय का साहित्य जगत में श्रेष्ठ दोहा-संकलन है और हर कविता और छंद पसंद करने वाले पाठक को इसे अवश्य पढ़ना चाहिए.  मैं इस दोहा-संकलन के सम्पादक, सह-सम्पादक और सभी दोहाकारों को बहुत-बहुत बधाई देता हूँ और आशा करता हूँ कि यह पुस्तक अधिक से अधिक छंद-काव्य प्रेमियों तक पहुँचेगी.

 

समीक्षक : अशोक कुमार रक्ताले,

54/40, राजस्व-कॉलोनी, फ्रीगंज,

उज्जैन-456010 (म.प्र.)

मो.-09827256343.

Views: 936

Attachments:

Replies to This Discussion

आदरणीय अशोक भाईजी, सद्यः प्रकाशित दोहा-संग्रह ’टुकड़ा-टुकड़ा धूप’ के विषय में जानना-पढ़ना सुखकर है. यह इस तथ्य की आस्श्स्तिभी  है कि आजका आधुनिक समाज भी छंदों के प्रति आग्रही है.

इस संग्रह में सम्मिलित किए गये सभी दोहाकारों को असीम शुभकामनाएँ. 

आपकी समीक्षा संग्रह के सकारात्मक और आवश्यक पक्ष को सुगढ़ ढंग से सामने लाती हुई है. आपके इस प्रयास के प्रति हार्दिक बधाइयाँ. 

शुभातिशुभ

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। लम्बे अंतराल के बाद पटल पर आपकी मुग्ध करती गजल से मन को असीम सुख…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service