For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

Alok Rawat
  • Male
  • Lucknow, Uttar Pradesh
  • India
Share on Facebook MySpace
 

Alok Rawat's Page

Latest Activity

Alok Rawat replied to डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव's discussion साहित्य-संध्या ओबीओ लखनऊ-चैप्टर माह दिसंबर 2020–एक प्रतिवेदन   ::   डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव
"आदरणीय गोपाल दादा, आपका हर प्रतिवेदन अपने आप में अद्वितीय होता है | वास्तव में हर कवि की रचना को पढ़कर, उसकी गहराई में उतरकर उसे अपनी सार्थक अभिव्यक्ति प्रदान करना अद्भुत है | मैंने कई अन्य लोगों के प्रतिवेदन भी पढ़े हैं लेकिन यह निश्चित रूप से कह…"
Jan 13, 2021
Alok Rawat replied to डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव's discussion ओबीओ लखनऊ-चैप्टर की साहित्य-संध्या माह मई 2020–एक प्रतिवेदन ::  डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव
"वाक़ई, ओबीओ लखनऊ चैप्टर की माह मई 2020 की मासिक गोष्ठी बहुत ही शानदार ढंग से सम्पन्न हुई | इस गोष्ठी में सभी रचनाकारों ने अपने बेहतरीन कलाम पेश किये थे और गोष्ठी अपने उरूज़ पर पहुंची थी | भले ही लखनऊ चैप्टर में कम लोग हों लेकिन ये 10 - 12 लोग अपनी…"
Jul 4, 2020

Profile Information

Gender
Male
City State
Lucknow Uttar Pradesh
Native Place
Lucknow
Profession
Bank Employee
About me
Aahat Lucknowi

दिल ए नादान से हरगिज़ न संभाली जाए
आरजू ऐसी कोई दिल में न पाली जाए

जान मांगी है तो अपनी भी यही कोशिश है
ऐ मेरे दोस्त तेरी बात न खाली जाए

अपने हाथों के करिश्मे पे भरोसा करके
अपनी सोई हुई तक़दीर जगा ली जाए

आज फिर छत पे मेरा चाँद नज़र आया है
क्यूँ न फिर आज चलो ईद मना ली जाए

घर में दीवार उठी है तो कोई बात नहीं
ऐसा करते हैं कि छत अपनी मिला ली जाए

जब किसी और के बस में नहीं है खुश रखना
खुद ही खुश रहने की तरकीब निकाली जाए

जब किसी को भी गुनाहों की सज़ा देनी हो
इक नज़र अपने गुनाहों पे भी डाली जाए

मौलिक एवं अप्रकाशित

Comment Wall (2 comments)

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

At 7:03pm on June 3, 2017, डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव said…

सुखद आश्चर्य . ओ बी ओ में आपका स्वागत है . अब आप ओ बी ओ लखनऊ चैप्टर के सम्मानित सदस्य है . दादा शरदिंदु जी को इस रत्न की प्राप्ति पर बधाई . मेरी  रचना के पाठको में एक वृद्धि और हुयी . वाह , अति सुन्दर .

 

At 11:58am on June 2, 2017, Alok Rawat said…

कभी डोली सजाते हैं कभी अर्थी उठाते हैं
हम इक दूजे के सुख दुख मे हमेशा काम आते हैं
मैं जिस बस्ती मे रहता हूँ वो हिन्दुस्तान है मेरा
मुसलमान दोस्त हैं बच्चे मुझे चाचा बुलाते हैं

Alok Rawat's Blog

ग़ज़ल

मुहब्बत में हमीं मुजरिम हैं हम ये मान लेते हैं

चलो अब तुम कहो तुमसे तुम्हारी जान लेते हैं



ज़रा हम भी तो देखें धार उन क़ातिल निगाहों की

सुना है वो इसी ख़ंजर से सबकी जान लेते हैं



जो फिर देखो उन्हें तो वो जुदा लगते हैं पहले से

कहें कैसे कि हम उनको सही पहचान लेते हैं



कभी गुस्सा कभी आँसू कभी फिर रूठना उनका

वो कितने इम्तिहाँ मुझसे मेरे भगवान लेते हैं



तो फिर दुनिया क्या इस दुनिया का रखवाला भी झुकता है

मुहब्बत करने वाले भी अगर ज़िद ठान… Continue

Posted on July 9, 2018 at 6:54pm — 20 Comments

ग़ज़ल: दिल ए नादान से हरगिज़ न संभाली जाए

दिल ए नादान से हरगिज़ न संभाली जाए 

आरजू ऐसी कोई दिल में न पाली जाए

जान मांगी है तो अपनी भी यही कोशिश है 

ऐ मेरे दोस्त तेरी बात न खाली जाए

अपने हाथों के करिश्मे पे भरोसा करके 

अपनी सोई हुई तक़दीर जगा ली जाए

आज फिर छत पे मेरा चाँद नज़र आया है 

क्यूँ न फिर आज चलो ईद मना ली जाए

घर में दीवार उठी है तो कोई बात नहीं 

ऐसा करते हैं कि छत अपनी मिला ली जाए

जब किसी और के बस में नहीं है खुश रखना 

खुद ही…

Continue

Posted on November 13, 2017 at 2:30pm — 17 Comments

 
 
 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
22 hours ago
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदरणीय शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। शीर्षक लिखना भूल गया जिसके लिए…"
yesterday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"समय _____ "बिना हाथ पाँव धोये अन्दर मत आना। पानी साबुन सब रखा है बाहर और फिर नहा…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service