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याद आते है वो लम्हे तो आँखो से आँसू छलक जाते है,
वो किताबो वाले दिन बडी मुश्किल से मिलते है,
हम तो यादो मे जलते है पर वो कहीं और रहते है,
याद आते है वो लम्हे तो आँखो से आँसू छलक जाते है,
वो घंटो बाते…
Posted on July 28, 2011 at 1:00pm — 1 Comment
क्या इसी को मुहब्बत कहते हैं
जब हम बैचेन से रहते हैं
अक्सर कुछ कहने की चाह मे
सपनों मे खोये रहते हैं
क्या इसी को मुहब्बत कहते हैं
उनकी एक झलक पाने के लिए
हम हर दिन राहों मे इंतजार करते हैं
न जाने क्यों हम कुछ कहने से डरते हैं
क्या इसी को मुहब्बत कहते हैं
अक्सर वो सपनों में आती है
आँखें खोलूँ तो न जाने कहाँ चली जाती है
सिर्फ इन आँखों को उसकी ही सूरत भाती है
क्या इसी…
Posted on July 26, 2011 at 10:30am — 6 Comments
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Comment Wall (8 comments)
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विश्वजीत जी नमस्कार ! आपकी दाद के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !
विश्वजीत जी बहुत बहुत शुक्रिया ! आपको ग़ज़ल पसंद आई और आपकी तारीफ मिली । अच्छा लगा।
डॉ. सूर्या बाली "सूरज"
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…