मंदिर के बाहर भिखारियों की कतार में वो भी खड़ा था, पर भिखारी नहीं लगता था, उसकी आँखों में खुद्दारी, चेहरे पे आत्मविश्वास था । सेठजी हमेशा की तरह एक घंटे की पूजा की समाप्ति के बाद बाहर आये, चाल में अमीरों वाला रौबीलापन और चेहरे पे दानकर्ता होने का गर्व, जैसे साक्षात् भगवान् लोगों का दुःख दूर करने उतर आये हो, सबसे ज्यादा आकर्षक वो फूली हुई तोंद, शायद संसार के हर पुण्य का हिसाब इसी में हो, साथ में पचास के नोटों की गड्डी लिये बूढ़ा मुनीम, जो कई पुश्तों से सेठजी के सभी काम धंधों का हिसाब किताब…
ContinuePosted on March 3, 2013 at 5:30pm — 3 Comments
कुरबतों में खुश न थे, फुर्क़तों का ग़म भी नहीं,
पहले जैसे वो अब नहीं, पहले जैसे हम भी नहीं ।
बात जो लब पर है रुकी, जान शायद लेकर रहे,
भूलने का दिल भी नहीं, कह दे इतना दम भी नहीं ।
फिर उदासी बढ़ने लगी, शाम से पहले क्या करें,
इक यहाँ तुम भी नहीं, दूसरे मौसम भी…
Posted on February 24, 2013 at 3:30am — 6 Comments
Posted on October 12, 2011 at 11:30pm — 2 Comments
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मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
सदस्य टीम प्रबंधनRana Pratap Singh said…