हमारी सोच का पंछी अभी उड़ान मे है
ज़ॅमी से दूर बहुत दूर आसमान मे है
न कल के ख्वाब न पुरखों की आनबान मे है
तेरा वजूद अगर है तो वर्तमान मे है .....
Posted on September 5, 2011 at 7:37pm — 3 Comments
Posted on June 8, 2010 at 12:00am — 7 Comments
Posted on June 4, 2010 at 5:32pm — 7 Comments
Posted on June 3, 2010 at 9:47pm — 8 Comments
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Comment Wall (9 comments)
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मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
कहीं पे शब्द समानार्थी नहीं होते
न जाने कौन सा बनवास है की बंजारे
किसी नगर में भी शरणार्थी नहीं होते
kamal gzab
मेरा चेहरा बदल नही सकता
मुझ को मिट्टी मे तुम मिला भी दो
तेरे साँचे मे ढल नही सकता
bahut khoob surat ...waah
मुख्य प्रबंधकEr. Ganesh Jee "Bagi" said…
likhte rahiye
RATNESH RAMAN PATHAK