तपती दोपहरी में पसीने से
भीगा हुवा ये तन
दूर एक रेगिस्तान में
पानी को तरस रहा है ये मन
है इसी आस में की बारिश तो होगी कभी
हमारे सुने से आँगन में
कोई फुलवारी तो खिलेगी कभी
तपती रेत पर कभी एक पानी की बूँद न
गिरी
रेगिस्तान में एक घर में जला रही है दोपहरी
रेत के टिलों में पेड़ की
छाव को
तरस रहा है ये मन
कभी तो बारिश होगी
कभी तो भिगेगा ये तन
तपता
रेगिस्तान है फिर भी प्यारा यहाँ का घर
बारिश न आए तो…
Posted on August 20, 2012 at 2:00pm — 6 Comments
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Comment Wall (3 comments)
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Very Nice
sundar shabdon se piroyi rachna.............
deepak kuluvi
सरोज जी , सादर प्रणाम आपको हमारी लाइनें अच्छी लगी, हम आपके आभारी है आपकी हौसला अफजाई से मुझे आगे लिखने की हिम्मत और प्रेरणा मिलेगी.