पास हो मेरे ये कितनी
बार तो बतला चुके तुम !
कौन कहता जा चुके तुम ?
आँख जब धुंधला गई तो
मैंने देखा
तुम ही उस बादल में थे ,
और फिर बादल नदी का
रूप लेकर बह चला था ,
नेह की धरती भिगोता
और मेरी आत्मा हर दिन हरी होती गई !
उसके पनघट पर जलाए
दीप मैंने स्मृति के !
झिलमिलाते , मुस्कुराते
तुम नदी के जल में थे !
जब भी दिल धडका मेरा तब
तुम ही उस हलचल में थे…
Added by Arun Sri on January 31, 2012 at 12:00pm — 6 Comments
काश !
कोई दिन मेरा घर में गुजरता
बेवजह बातें बनाते
हँसते – हँसाते
गीत कोई गुनगुनाते
पर नही मुमकिन
मैं दिन घर में बिताऊँ!
एक नदी प्यासी पड़ी घर में अकेले
और रेगिस्तान में मैं जल रहा हूँ
थक चुका पर चल रहा हूँ
ढूढता हूँ अंजुली भर जल
जिसे ले
शाम को घर लौट जाऊँ
प्यास को पानी पिला दूँ !
मेरे आँगन की बहारों पर
जवानी छा गई है
और मैं
धूप के बाज़ार में बैठा हुआ…
ContinueAdded by Arun Sri on January 17, 2012 at 1:30pm — 2 Comments
बेवफा होना तेरा क्या क्या सितम ढाने लगा
अब तो मैं मंदिर में भी जाने से घबराने लगा
हो अलग तुमने जला डाली थी मेरी याद तक
मैं तेरी तस्वीर से दिल अपना बहलाने लगा
भोर की पहली किरण मैंने चुराकर दी जिसे
दूसरे के घर को अब वो फूल महकाने लगा
सर्द रातों में लिपट जाता था कोहरे की तरह
मैं बना सूरज तो दुःख का चाँद शरमाने लगा
घर के आगे जब से इक ऊँची ईमारत बन गई
मेरे घर आने से अब सूरज भी कतराने लगा
………………………………….. अरुन…
ContinueAdded by Arun Sri on January 9, 2012 at 2:00pm — 4 Comments
याद आता है
अपना बचपन,
जब हम उड़ान में रहते थे
बेफिक्री के असमान में रहते थे
दिन गुजरता था बदमाशियों में
पर रात अपने ईमान में रहते थे !
याद आता है,
दिन भर तपते सूरज को चिढाना
आंधियो के पीछे भागना
उनसे आगे निकलने की कोशिश करना
जलती तेज हवाओं से हाथ मिलाना,
और फिर ..............
पता ही नही चला कि
कब माँ की कहानियों की गोद से उठकर
हमारी नींद सपनो के आगोश में चली गई !
दिन से अच्छी थी रातें
हमेशा से
और…
Added by Arun Sri on January 7, 2012 at 11:00am — 6 Comments
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी द्वारा इस मंच पर लाई गई इस विलुप्तप्राय विधा से प्रेरित हो मैंने भी चरणबद्ध तरीके से एक बेटी से सम्बंधित कटु सत्यों को रेखांकित करने प्रयास किया है ! वरिष्टजनों का मार्गदर्शन चाहूँगा !
छन्न पकैया छन्न पकैया सबकी है मत मारी
सर को पकड़े बैठ गए सुन बेटी की किलकारी
छन्न पकैया छन्न पकैया छीना है हर मौका
छोड़ पढाई नन्ही बेटी, करती चूल्हा चौंका
छन्न पकैया छन्न पकैया जीवन भर…
ContinueAdded by Arun Sri on January 4, 2012 at 2:00pm — 17 Comments
टूटे सुर सब जोड़ बना डालें कोई सुमधुर संगीत
आओ साथी मिलके गाए नए वर्ष का नूतन गीत
नव सूरज से मैं ले लूँगा चमकीली आशा किरनें
तुम ले लेना नई रात से ख्वाब सुनहरे जीवन के
उजली धरती नए साल की थोड़ी और सजानी है
तुम बिखरी उम्मीद बटोरो मैं टुकड़े टूटे मन के
भूल पुरानी ठोकर ढूँढे नई मंजिलें स्वर्णिम जीत
आओ साथी मिलके गाए नए वर्ष का नूतन गीत
साथ मेरे हो तेरी कोमल फूल सी ऊर्जावान…
ContinueAdded by Arun Sri on January 3, 2012 at 12:30pm — 5 Comments
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