उत्थान पतन के बीच साल फिर बीत गया,
बस आशा और निराशा के संग बीत गया।
कुछ दु:ख मिले कुछ आहत मन उल्लसित हुआ,
वह सुख मिले बस इंतजार में बीत गया।
नव वर्ष किरण फिर आशा की लेकर आया,
जनगण मन के मन-मन में फिर उल्लास जगा।
यह जगा रहे उल्लास पूर्ण हो अभिलाषा,
जनता की भाषा बने तंत्र की परिभाषा।
अपराध न हो, हर नारी को सम्मान मिले,
हर मुरझाए…
Added by Atul Chandra Awsathi *अतुल* on January 1, 2014 at 8:09pm — 7 Comments
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