For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गर्मी के दिन याद दिलाते हैं गांवों की

पछुआ की यह गर्म हवा व्याकुल करती है,
सूरज की भी किरणें हैं ले रहीं परीक्षा।
गर्मी के दिन याद दिलाते हैं गांवों की,
काश! छुअन छू जाती हमकों अमराई की,
गर्मी के दिन याद.........................।
शहरों की यह आपाधापी, कमरे में बंद अपनी दुनिया।
कंप्यूटर टीवी तक सिमटी बचपन की प्यारी उछलकूद,
गर्मी के खुले खुले से दिन फिर कब हमको मिल पाएंगे,
वैशाख जेठ की तपिश हमें विचलित करती।
झगरु काका के नीम तले गपशप के दिन कब आएंगे।
गर्मी के दिन याद दिलाते हैं गांवों की,
काश! छुअन छू जाती हमको अमराई की।
रमधनिया काकी के गूलर का वह झूला,
रमझल्लै और चकल्लस बड़के मामा की,
वह बुझव्वर अंत्याक्षरी अब हमको बहुत सताती है।
कब लौटेगा बचपन, गर्मी के दिन बीतेंगे गांवों में
अमिया की सांेधी महक हमें तरसाती है।
गर्मी के दिन याद दिलाते हैं गांवों की
काश! छुअन छू जाती हमको अमराई की
दादी की लस्सी और कचावट नहीं रही,
नानी के हाथें की वो अमावट नहीं रही,
आपाधापी में भूल गए गांवों की सुखन।
गर्मी की तपिश सूरज की किरन फिर याद दिलाती है।
काश! छुअन छू जाती हमको अमराई की।
कल्लू रामू बब्लू गुडि़या सब कहां गए,
लच्ची डाड़ी, सिप्पल औ कबड्डी हवा हुए।
गोधूली बेला में गायों की वह रभार,
दादू के दूध दुहन की छांछ हमे तरसाती है।
दादी का प्यार, बड़की अम्मा का वह दुलार,
फिर कब मिल पाएगा..........
गर्मी के दिन याद दिलाते हैं गांवों की,
काश! छुअन छू जाती हमको अमराई की।
वह नई फसल की गुड़धनिया,
गोइड़े का ताल छप्पक छैया,
बदलू की चाट, रामू की बरफ फिर मन ललचाती है।
गर्मी के दिन याद दिलाते हैं गांवों की,
काश! छुअन छू जाती हमको अमराई की।
अतुल चंद्र अवस्थी ’अतुल’
9838642000

("मौलिक व अप्रकाशित")

Views: 574

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 6, 2013 at 8:03am

कल्लू रामू बब्लू गुडि़या सब कहां गए,
लच्ची डाड़ी, सिप्पल औ कबड्डी हवा हुए।......शहरों और गाँवों से भी अब पारम्पारिक खेलों का लुप्त होना मन को निराश करता है. 

बीते दिनों की मधुर यादों को रचना में सुन्दरता से जीवित किया है आपने आदरणीय अतुल चन्द्र जी सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by Atul Chandra Awsathi *अतुल* on May 31, 2013 at 12:05pm

 आदरणीय .Laxman Prasad Ladiwalacoontee mukerji arun kumar nigamaman kumarविजय मिश्रram shiromani pathak जी हौसला अफजाई के लिए धन्यवाद


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on May 30, 2013 at 8:42pm

सन्न- उन्नीस सौ साठ के दशक का बचपन याद आ गया. ग्रामीण परिदृश्य, खेलकूद, खानपान, उधम मस्तियाँ,रिश्तों की मीठास,संस्कृति... सब कुछ श्वेत-श्याम चलचित्र की भाँति मन को गुदगुदा गया. सहज रचना के लिए बधाई........

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 30, 2013 at 7:42pm

प्रचंड गर्मी में भी खुल हवा में, पेड़ों को छाँव तले, सायंकाल चोपाल पर बतियाते, जो सुखद आनंद आता था

वह अब शहर वासियों के लिए, विशेषकर जिनका बचपन गाँव में गुजरा हो, याद करने पर भी सुखद अहसास 

देता है | ऐसा सुखद अहसास आपकी रचना पढने मात्र से हो रहा है | सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by aman kumar on May 30, 2013 at 4:47pm

ऊँचाईयां नापनी हैं -
तो ये आकाश कुछ भी नहीं .
इससे भी बुलंद
कई आसमां हैं .
उठा के रख
फलक से भी ऊपर -
अपने इरादे
की सितारों से ,
आगे एक और भी जहाँ हैं .

Comment by विजय मिश्र on May 30, 2013 at 1:39pm
गाँव का आकर्षण सही में जीवनपर्यंत नहीं छुटता और आप जब भी अपने हालातों से उबते हैं तब हँसता -मुस्काता आपका बचपन मुँह चिढाने को आपके आगे आकर खड़ा हो जाता है .बहुत आनंदकर लगी भाई अतुलजी आपकी यह कविता .
Comment by ram shiromani pathak on May 29, 2013 at 6:50pm

आदरणीय बहुत सुन्दर./////बधाई

Comment by coontee mukerji on May 29, 2013 at 2:57pm

अतुल जी , इस दहकती गरमी में आपकी रचना ने मन में ठंडक पहूँचा दी ..........पछुआ की यह गर्म हवा व्याकुल करती है,
सूरज की भी किरणें हैं ले रहीं परीक्षा।
गर्मी के दिन याद दिलाते हैं गांवों की,
काश! छुअन छू जाती हमकों अमराई की,
गर्मी के दिन याद.........................।अति सुंदर / सादर /  कुंती.

Comment by Atul Chandra Awsathi *अतुल* on May 28, 2013 at 8:55pm

आदरणीय श्याम नरायन जी व डाआशुतोष जी हौसला अफजाई के लिए धन्यवाद.

Comment by Shyam Narain Verma on May 28, 2013 at 4:11pm
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ………………

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Saturday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Saturday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Saturday
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service