पछुआ की यह गर्म हवा व्याकुल करती है,
सूरज की भी किरणें हैं ले रहीं परीक्षा।
गर्मी के दिन याद दिलाते हैं गांवों की,
काश! छुअन छू जाती हमकों अमराई की,
गर्मी के दिन याद.........................।
शहरों की यह आपाधापी, कमरे में बंद अपनी दुनिया।
कंप्यूटर टीवी तक सिमटी बचपन की प्यारी उछलकूद,
गर्मी के खुले खुले से दिन फिर कब हमको मिल पाएंगे,
वैशाख जेठ की तपिश हमें विचलित करती।
झगरु काका के नीम तले गपशप के दिन कब आएंगे।
गर्मी के दिन याद दिलाते हैं गांवों की,
काश! छुअन छू जाती हमको अमराई की।
रमधनिया काकी के गूलर का वह झूला,
रमझल्लै और चकल्लस बड़के मामा की,
वह बुझव्वर अंत्याक्षरी अब हमको बहुत सताती है।
कब लौटेगा बचपन, गर्मी के दिन बीतेंगे गांवों में
अमिया की सांेधी महक हमें तरसाती है।
गर्मी के दिन याद दिलाते हैं गांवों की
काश! छुअन छू जाती हमको अमराई की
दादी की लस्सी और कचावट नहीं रही,
नानी के हाथें की वो अमावट नहीं रही,
आपाधापी में भूल गए गांवों की सुखन।
गर्मी की तपिश सूरज की किरन फिर याद दिलाती है।
काश! छुअन छू जाती हमको अमराई की।
कल्लू रामू बब्लू गुडि़या सब कहां गए,
लच्ची डाड़ी, सिप्पल औ कबड्डी हवा हुए।
गोधूली बेला में गायों की वह रभार,
दादू के दूध दुहन की छांछ हमे तरसाती है।
दादी का प्यार, बड़की अम्मा का वह दुलार,
फिर कब मिल पाएगा..........
गर्मी के दिन याद दिलाते हैं गांवों की,
काश! छुअन छू जाती हमको अमराई की।
वह नई फसल की गुड़धनिया,
गोइड़े का ताल छप्पक छैया,
बदलू की चाट, रामू की बरफ फिर मन ललचाती है।
गर्मी के दिन याद दिलाते हैं गांवों की,
काश! छुअन छू जाती हमको अमराई की।
अतुल चंद्र अवस्थी ’अतुल’
9838642000
("मौलिक व अप्रकाशित")
Comment
कल्लू रामू बब्लू गुडि़या सब कहां गए,
लच्ची डाड़ी, सिप्पल औ कबड्डी हवा हुए।......शहरों और गाँवों से भी अब पारम्पारिक खेलों का लुप्त होना मन को निराश करता है.
बीते दिनों की मधुर यादों को रचना में सुन्दरता से जीवित किया है आपने आदरणीय अतुल चन्द्र जी सादर बधाई स्वीकारें.
आदरणीय .Laxman Prasad Ladiwala, coontee mukerji, arun kumar nigam, aman kumar, विजय मिश्र, ram shiromani pathak जी हौसला अफजाई के लिए धन्यवाद
सन्न- उन्नीस सौ साठ के दशक का बचपन याद आ गया. ग्रामीण परिदृश्य, खेलकूद, खानपान, उधम मस्तियाँ,रिश्तों की मीठास,संस्कृति... सब कुछ श्वेत-श्याम चलचित्र की भाँति मन को गुदगुदा गया. सहज रचना के लिए बधाई........
प्रचंड गर्मी में भी खुल हवा में, पेड़ों को छाँव तले, सायंकाल चोपाल पर बतियाते, जो सुखद आनंद आता था
वह अब शहर वासियों के लिए, विशेषकर जिनका बचपन गाँव में गुजरा हो, याद करने पर भी सुखद अहसास
देता है | ऐसा सुखद अहसास आपकी रचना पढने मात्र से हो रहा है | सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई
ऊँचाईयां नापनी हैं -
तो ये आकाश कुछ भी नहीं .
इससे भी बुलंद
कई आसमां हैं .
उठा के रख
फलक से भी ऊपर -
अपने इरादे
की सितारों से ,
आगे एक और भी जहाँ हैं .
आदरणीय बहुत सुन्दर./////बधाई
अतुल जी , इस दहकती गरमी में आपकी रचना ने मन में ठंडक पहूँचा दी ..........पछुआ की यह गर्म हवा व्याकुल करती है,
सूरज की भी किरणें हैं ले रहीं परीक्षा।
गर्मी के दिन याद दिलाते हैं गांवों की,
काश! छुअन छू जाती हमकों अमराई की,
गर्मी के दिन याद.........................।अति सुंदर / सादर / कुंती.
आदरणीय श्याम नरायन जी व डाआशुतोष जी हौसला अफजाई के लिए धन्यवाद.
बहुत सुन्दर...बधाई स्वीकार करें ……………… |
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online