राजपूत राजाओं को संगठित करता
एक मेवाड़ का अद्भुत शासक था
थर-थर कांपते शत्रु जिससे, वह संग्राम सिंह महाराजा था॥
वीरता-उदारता का समावेश था जिसमें
सिसोदिया वंश का गौरव था
विस्तार किया जो साम्राज्य का, हिंद देश का रक्षक था॥
सौ लड़ाइयाँ लड़ी थी जिसने
खो आँख-हाथ-पैर को बैठा था
एक छत्र के नीचे लाया राजपूतों को, शक्तिशाली ऐसा उत्तर भारत का राजा था॥
सतलुज से लेकर नर्मदा…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on January 23, 2024 at 2:54pm — No Comments
जिसे कहते भारत का गौरव
आज उस सम्राट की गाथा कहता हूँ
स्वर्णभूमि जो सुख-समृद्धि की, महिमा उस अमरावती की गाता हूँ॥
विश्व का केंद्र जो विश्व की धुरी थी
जिसे उज्जयिनी नगरी कहता हूँ
कीर्ति सौरभ जिसका चहुँ ओर था फैला, उसे महाकाल से रक्षित पाता हूँ॥
स्वर्ण-रजत मोती-माणिक की न कमी जहाँ पर
धन-धान्य से राजकोष को भरा मैं पाता हूँ
सच्चे परितोष थे नगर के जो, उन्हें संज्ञा नवरत्न से सुशोभित पाता…
ContinueAdded by PHOOL SINGH on January 15, 2024 at 10:00am — No Comments
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