१२२२,१२२२,१२२२
नई रुत का अभी तूफ़ान बाकी है।
निज़ामत का नया उन्वान बाकी है।
निवाले छीनकर ख़ुश हो मेरे आका,
अभी अपना ये दस्तरख़ान बाकी है।
अभी टूटा नहीं है सब्र का पुल भी,
ज़रा सा और इत्मीनान बाकी है।
अभी थोड़ी सी घाटी ही तो खोई है,
अभी तो सारा हिन्दुस्तान बाकी है।
हथेली पर तुम्हारी रख तो दीं आँखें,
हमारे पास सुरमेदान बाकी है।
कयामत के बचे होंगे महीने कुछ,
अभी इंसान में इंसान बाकी…
Added by Balram Dhakar on January 23, 2018 at 6:18pm — 16 Comments
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