2122 2122 2122
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गांव भी अब तो शहर बनने लगा है
प्यार औ सद्भाव भी घटने लगा है
खुल गई है खूब शिक्षा की दुकानें
ज्ञान भी अब दाम पर बिकने लगा है
हो गये है लोग बैरी अब यहां भी
खून सड़कों पर बहुत बहने लगा है
गांव के हर मोड़ पर टकराव है अब
खेत औ खलियान तक जलने लगा है
सोच ’‘मेठानी‘’ हुआ है, क्या यहां पर
जो कभी बोया वही उगने लगा है
( मौलिक एवं अप्रकाशित )
- दयाराम मेठानी
Added by Dayaram Methani on January 23, 2019 at 12:00pm — 21 Comments
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