क्या कहूं मैं किस तरह तकदीर का मारा हुआ
सर्द रातें थीं मगर बिस्तर का बंटवारा हुआ
कहने को तो साथ हैं वो हर कदम ओ हर घड़ी
फिर भी उनकी बेरुखी से दिल ये नाकारा हुआ
यूं तो अपने हर तरफ हैं शबनमी दरिया मगर
जब नजर अपनी पडी पानी सभी खारा हुआ
जिनकी उम्मीदों पे सांसें चल रही थीं आज तक
वो न अपने हो सके, अपना जहां सारा हुआ
हंस…
Added by VISHAAL CHARCHCHIT on January 18, 2013 at 12:30am — 16 Comments
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