बचपन से डरता रहा
दिल में डर बसता रहा
बहुत अच्छा हुआ जो
मै नहीं हुआ निडर
माँ हमेशा कहती थी
चार लोग देखेंगे तो
क्या कहेंगे
उन चार लोगो का डर
पिता कि मार का डर
अपने पैरों पर खड़े ना हो पाने का डर
खड़े हुए तो दौड़ ना पाने का डर
दौड़े तो गिर जाने का डर
जवान हुए तो पहचान खोने का डर
मोहब्ब्त में नाकाम होने का डर
जब हुई तो उसमे खोने का डर
गृहस्थी ना चला पाने का डर
बच्चो को ना पढ़ा…
ContinueAdded by pawan amba on February 25, 2014 at 7:00am — 3 Comments
सुनी थी वीरों कि कहानियाँ
मुश्किलों से भरी बीती जिनकी जवानियाँ
संस्कारों कि दीवारों से घिरता रहा
लड़ता रहा और उलझता रहा
जय पराजय में पिसता रहा
कष्टो के तीरों से छलनी हुआ तन
हालातों के कांटो से घायल हुआ मन
पर मन ने चुनी हर चुभन
बस इन सबने मेरा साहस बढ़ाया
जब खुली आँख,मै दूर था निकल आया
साथ था तो बस केवल अपना साया
मन ने फिर वही सवाल दोहराया
माँ तूने मुझे अभिमन्यु क्यूँ बनाया
अब मानता हूँ कि तुम्हारा…
ContinueAdded by pawan amba on February 23, 2014 at 3:00pm — 2 Comments
वो मिल ही गयी.......
जिंदगी के हर मोड़ पर
बरसों से मै उसे देख रहा था
और वो मुझे देखती रहती थी
वक्त ही ना मिला जो उससे पूछता
क्यूँ वो मेरा इंतज़ार कर रही थी
अब थक सा गया था
धीरे धीरे दोड रहा था
आज मुझे वो ज्यादा करीब लगी
पूछ ही लिया रुक कर
मुद्दतों से देख रहा हूँ
तुम यूँ ही खड़ी हो
क्यूँ मुझसे मिलने की जिद्द पर अड़ी हो
मुस्कुरा कर बोली बस
तुम्हारा ही इंतज़ार था
मेरी भी मज़बूरी है,
इसलिए कंही नहीं…
Added by pawan amba on February 16, 2014 at 1:30pm — 10 Comments
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