विशेष दिन....
कलैंडर कैसा भी हो
अंधेरे मे भी चमकती है वो
मुझे अपने महबूब से भी
अधिक खूबसूरत लगती है वो...
शादी की हो सालगिरह या जन्मदिन
साल मे आते केवल एक बार
मगर हर महीने इनसे भी अधिक
खुशियाँ लाती है वो.....
गुजर जाता है पूरा महीना
बजट बनाते बनाते
गर शनिवार हुआ उस दिन
बहुत रौनक लाती है वो....
हमारे जैसे नोकरी वालों की
हर दिल अज़ीज़ है
जो मेरे दिल के करीब है
हर महीने की सात तारीख है वो......
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
वाह! सुन्दर रचना सच है सेलेरी वाला दिन किसे अच्छा नहीं लगता मगर गीत 'खुश है ज़माना आज पहली तारीख है....." तो अवश्य सुना है किन्तु सात तारीख का गीत आज पहली बार सुन रहा हूँ. लगता है कहीं खुशियाँ भी कुछ दिन तरसा कर दर्शन दे रही है. फिर भी मैं तो यही कहूंगा मिली तो सही...
मिलती जितनी सैलरी, झट से है उड़ जात, पहले भी खाली हाथ थे, अब भी खाली हाथ । मैं सैलरी वाले दिन सबसे अधिक दुखी रहता हूं क्योंकि पता होता है कि यह हाथ में रहने वाली नहीं है कुछ बीवी उड़ाएगी कुछ बच्चे ले जाएंगें, फक्कड़ बाबा तो हमेशा फककड़ ही रह जाएंगें , आपकी संवेदना सार्वभौमिक है, सादर
रचना रोचक है। बधाई।
विजय निकोर
हमतो आज भी पहली तारीख ही गाते हैं. भाई, भाग्य-भाग्य की बात !!!. .
:-)))))
बिलकुल सही कहा आपने सात तारिख यानी पेमेंट मिलने का दिन!
हर वेतनभोगी को उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार रहता है!
हर दिल अजीज का तो बेसब्री से इन्तजार होता ही है, चाहे वह वास्तु हो, दिन हो, प्रिय हो, जो भी हो
इन्जार की घडिया ख़त्म होते ही अगली बार के लिए फिर इन्तजार में दिन गिनने शुरू हो जाते है |
अच्छी कल्पना कर रचना करने हेतु बधाई |
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..
सचमुच बहुत ख़ास होती है हर माह की सात तारीख.
हार्दिक बधाई.
बिलकुल सही कहा आपने सात तारिख यानी पेमेंट मिलने का दिन!
हर वेतनभोगी को उस दिन का बेसब्री से इंतज़ार रहता है!
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