कोई सूरज की तारीफ करे तो
चंदा तुम ना होना गुमसुम l
सूरज की साँसों की गर्मी
करती है भू का उर्वर तन
और तुमसे शीतलता पाकर
कन-कन में होता परिवर्तन
है दोनों की ही हमें जरूरत
धरती पर मुस्काना दोनों तुम l
मौसम के कई रूप बदलते
कभी पतझर या फिर बसंत
पर तुम दोनों अटल सदा से
नभ पर है साम्राज्य अनंत
तुम पर है सारा जग निर्भर
क्या होगा वरना क्या मालुम…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on February 28, 2012 at 9:30pm — 6 Comments
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