पंचामृत......दोहे
सावन-भादों सूखते, ठिठुरी आश्विन-पूस.
माघ-फाल्गुनी रक्त रस, रही प्रेम से चूस. १
अपने सारे दर्द हुए, जीवन के अभिलेख.
कुछ पन्ने इतिहास से, कुछ इस युग के देख. २
सत्य अहिंसा प्रेम-धन, सब पर्वत के रूप.
मन-मंदिर को ठग रहे, जैसे अंधे कूप. ३
राग-द्वेष नेतृत्व की, धारा प्रबल प्रवाह.
जन गण मन को डुबा कर, कहें स्वयं को शाह. ४
मौसम के हर रंग हैं, जीवन के संदेश.
कभी…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 26, 2016 at 9:30pm — 1 Comment
किसान का बेटा...
गंदे फटे वस्त्रों में उलझी धूल
झाड़ती सोंधी-सोंधी खुशुबू.
नीम की छांव में बैठ कर
निमकौड़ी !
खुद पिघल कर रचती
नये-नये अंकुर.
सावन मस्त होकर झूमता
वर्षा निछावर करती
जीवन के जल-कण
छप्पर रो पड़ते
किसान फटी आंखों से सहेज लेता...
जल-कण
बटुली में
थाली में.
धान के खेत लहलहाते
गंदे-फटे वस्त्र धुल जाते
चमकते सूर्य सा
साफ आसमान…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 26, 2016 at 6:00pm — No Comments
[१]
प्यार मुहब्बत संग दया समता,करुणाकर ही रखते हैं.
क्रूर कठोर अघोर सभी जन मे, सदबुद्धि वही फलते हैं.
रावण कौरव कंस बली हिरणाक्ष,सभी पल मे क्षरते हैं.
धर्म सधे जनमानस के हित, सत्यम नित्य कहा करते हैं.
[२]
वक्त बली अति सौम्य तुला रख, नीति सुनीति सदा पगता है.
काल अकाल विधी विधना, सबके सब मूक बयां करता है.
मीन - नदी अति व्यग्र रहें, बगुला - तट शांत मजा चखता है.
वक्त समग्र विकास करे, पर मानव सत्य नहीं गहता…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 23, 2016 at 12:00am — 2 Comments
आठ भगण पर आधारित सवैया...किरीट सवैया कहलाती है.
-१-
पावन हैं ऋतुराज समाजिक, मान सुज्ञान विधान प्रतिष्ठित.
पर्वत दृश्य समीर नदी रस, धार सुप्रीति समान प्रतिष्ठित.
काम कमान लिये फिरता, रति संग रखे हर बाण प्रतिष्ठित.
शंकर भस्म करे पल में, वर काम अनंग प्रधान प्रतिष्ठित.
-२-
गंग तरंग उमंग लिये नव प्राण धरा रस से कर सिंचित.
पाप विकार अनिष्ट गरिष्ठ समेट बही यश से कर सिंचित.
शुद्ध प्रबुद्ध प्रणाम करे…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 21, 2016 at 5:13am — 2 Comments
आनंद..!
आनंद का आकार.....
निराकार!
बात-बात पर अट्टहास करते
पल झपकते ही स्वर
हवा में बह जाते.
दिशाओं की कोंख
नित्य जन्मतीं
सूर्य-चंद्र अगणित तारे
सृष्टि के सृजन में
सत्यम शिवम सुंदरम
स्वयं शव!
शांति का संदेश देते ब्रह्म !
ऊंकार,
जीवन पुष्ट करता
जीव !
चक्रवत निरंतर खोजता
जीवन का आनंद..
परमानंद...पर,
आनंद की अनुभूति कभी न हो पाती
मिलता केवल दु:ख
सुख…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 17, 2016 at 8:17am — 4 Comments
मन आंगन की चुनमुन चिड़िया,
चंचल चित्त पर धैर्य सिखाती.
गांव-शहर हर घर-आंगन में
इधर फुदकती उधर मटकती
फिर तुलसी चौरे पर चढ़ कर
चीं चीं स्वर में गीत सुनाती
आस-पास के ज्वलन प्रदूषण
दूर करे इतिहास बुझाती. 1 मन आंगन की चुनमुन चिड़िया..
देह धोंसले घास-पूस के
मिट्टी रंग-रोगन अति सोंधी
आत्मदेव-गुरु हुये कषैले
सिर पर यश की थाली औंधी
बच्चों के डैने जब नभ को
लगे नापने, मां ! हर्षाती. २ मन…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 13, 2016 at 3:00pm — 4 Comments
१- अच्छे दिन !
सुबह-शाम !
घर-चौबारे आशंकित
प्रतीक्षारत सहेजते हैं...
दीप-बाती और तेल
आक्रोशित तम व्यग्रतावश बिखेर देता
असंख्य नक्षत्र....
भद्रा से प्रभावित
आर्द्रा-रोहिणी
व्यथित कृष्ण-ध्रुव की राह तकती
चांद, बादलों के घात से दु:खी
हवायें दृश्य बदल देतीं
बसंत के इशारों पर पतझड़
होलिका दहन कर बिखेरते
रोशनी,
चांदनी में लम्बी-लम्बी छाया...
ठूंठ वृक्ष,
नंगी टहनियां सब…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 5, 2016 at 10:05pm — 27 Comments
उपेक्षित....
दसों दिशाओं में डंका बजाता
चक्रवर्ती सम्राट......दिन!
यशस्वी-प्रकाशवान
निरंतर गतिमान
नित्य महासमर के उपरांत शिथिल,
क्लांत वश पिघल जाता
रक्त का कण-कण
संगठित करता लाल सागर
विचलित होती आत्मा
अश्रु आश्चर्यचकित...!
कपोलों पर ठिठके...
हवाएं अट्टहास करती
मचलती ज्वार-भाटा आदत से…
ContinueAdded by केवल प्रसाद 'सत्यम' on February 3, 2016 at 7:12am — 9 Comments
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