(१)
"मुई मई जान लेने आ गई"। मनफूला ने पंखा झलते हुए कहा। सुबह के दस बज रहे थे और दस बजे से ही गर्म हवा बहनी शुरू हो गई थी। गर्मी ने इस बार पिछले सत्ताईस वर्षों का रिकार्ड तोड़ दिया था। उनकी बहू राधा आँवले के चूर्ण को छोटी छोटी शीशियों में भर रही थी। उसका ब्लाउज पसीने से पूरी तरह भीग चुका था। उनका बेटा श्रीराम बाहर कुएँ से पानी खींचकर नहाने जा रहा था। घर के आँगन में दीवार से सटकर खड़ी एक पुरानी साइकिल श्रीराम का इंतजार कर…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 28, 2015 at 6:30pm — 16 Comments
बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२ २
माना मिट जाते हैं अक्षर कलम नहीं मिटती
मारो बम गोली या पत्थर कलम नहीं मिटती
जितने रोड़े आते उतना ज़्यादा चलती है
लुटकर, पिटकर, दबकर, घुटकर कलम नहीं मिटती
इसे मिटाने की कोशिश करते करते इक दिन
मिट जाते हैं सारे ख़ंजर कलम नहीं मिटती
पंडित, मुल्ला और पादरी सब मिट जाते हैं
मिट जाते मज़हब के दफ़्तर कलम नहीं मिटती
जब से कलम हुई पैदा सबने ये देखा है
ख़ुदा मिटा करते…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 25, 2015 at 12:30pm — 29 Comments
बह्र : २१२ २१२ २१२२
दूसरों में कमी ढूँढ़ते हैं
कैसे कैसे ख़ुशी ढूँढ़ते हैं
प्रेमिका उर्वशी ढूँढ़ते हैं
पर वधू जानकी ढूँढ़ते हैं
हर जगह गुदगुदी ढूँढ़ते हैं
घास भी मखमली ढूँढ़ते हैं
वोदका पीजिए आप, हम तो
दो नयन शर्बती ढूँढ़ते हैं
वो तो शैतान है जिसके बंदे
क़त्ल में बंदगी ढूँढ़ते हैं
आज भी हम समय की नदी में
बह गई ज़िन्दगी ढूँढ़ते हैं
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(मौलिक एवं…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 15, 2015 at 11:42pm — 28 Comments
बह्र : २२ २२ २२ २२ २२ २२
फिर मिल जाये तुम्हें वही रस्ता, रुक जाना
ख़ुद को दुहराने से है अच्छा रुक जाना
उनके दो ही काम दिलों पर भारी पड़ते
एक तो उनका चलना औ’ दूजा रुक जाना
दिल बंजर हो जाएगा आँसू मत रोको
ख़तरनाक है यूँ पानी खारा रुक जाना
तोड़ रहे तो सारे मंदिर मस्जिद तोड़ो
नफ़रत फैलाएगा एक ढाँचा रुक जाना
पंडित, मुल्ला पहुँच गये हैं लोकसभा में
अब तो मुश्किल है ‘सज्जन’ दंगा रुक…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 13, 2015 at 10:32pm — 17 Comments
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