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KALPANA BHATT ('रौनक़')'s Blog – March 2018 Archive (2)

शर्तों की शतरंज (लघुकथा)

"पापा! मुझे मोबाइल चाहिए, और अभी की अभी चाहिए|" सोनू ने जिद्द पकड़ ली थी।



"पागल हो गए हो क्या सोनू? यह क्या मोबाइल की जिद्द लिए बैठे हो, कोई मोबाइल-शोबईल नहीं मिलेगा,चुप-चाप खाना खाओ|" डाँटते हुए सोनू के पापा ने कहा|



लेकिन सोनू नहीं माना और हाथ-पैर पटकते हुए रोने लगा|



"रोता रह! पर तुम्हारी हर जिद्द नहीं मानूंगा | अभी पिछले महीने ही तुम्हें साइकिल दिलवाई है।" पापा का भी पारा चढ़ गया।



सोनू के दादा जी जो अब तक चुप थे,मुस्कुराकर बोले," आखिर बेटा तुम्हारा ही… Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on March 27, 2018 at 3:00pm — 4 Comments

ख़ामोशी की ज़ुबान (लघुकथा)

कभी देखा है खुद को आईने में? तुम्हारी सहेली शीला को देखो,खुद को कितना मेन्टेन किया हुआ है उसने| और तुम! तुम्हारी शकल पर हमेंशा  बारह बजते है| तंग आ गया हूँ तुम्हारी मनहूस शकल देखते देखते|" ऑफिस से घर आये शेखर के ऐसे विचार जानकार शीला खुद को न रोक पायी, उसने कुछ कहने को मुँह खोला ही था कि उसकी जेठानी ने कहा," अरे देवर जी! गर यह ऐसा न करेगी तो लोगों को पता कैसे चलेगा कि हमलोग इसको परेशान करते हैं| यह सब इसकी नौटंकी है, मुझे देखो दिन भर काम करती हूँ पर आपके भैया! मजाल है अब तक उन्होंने कुछ कहा…

Continue

Added by KALPANA BHATT ('रौनक़') on March 25, 2018 at 8:30am — 6 Comments

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