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सिखाते क्यों हमें हो तुम वही इतिहास की बातें
दिलों में घोलकर नफरत नये विश्वास की बातें
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बताओ घर बनेगा क्या हमारा आसमानों में
जमीनें छीन के करते सदा आवास की बातें
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कहाँ से हो कठौती में हमारे गंग की धारा
बिठाई ना मनों में जब कभी रविदास की बातें
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बहाकर अश्क भी यारो कहाँ दुख दूर होते हैं
गमों से पार पाने को करो परिहास की…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 29, 2014 at 7:30am — 29 Comments
2122 2122 2122
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आदमी को आदमी से बैर इतना
भर रहा अब खुद में ही वो मैर इतना
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दुश्मनो की बात करनी व्यर्थ है यूँ
अब सहोदर ही लगे है गैर इतना
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चादरें छोटी मिली हैं किश्मतों की
इसलिए भी मत पसारो पैर इतना
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दे रहे आवाज हम हैं बेखबर तुम
कर रहे हो किस जहाँ में सैर इतना
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किस तरह आऊं बता तुझ तक अभी मैं
गाव! उलझन दे गया है नैर इतना
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झूठ होते हैं सियासत के …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 24, 2014 at 8:30am — 20 Comments
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किया माथे तिलक झट से कहा नाकाम भी मुझको
बहुत ठोका लुहारों सा दिया आराम भी मुझको
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गिरा तो भी समझ मेरी न आयी शातिरी उसकी
बिठाया पास भी अपने किया बदनाम भी मुझको
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पता है साथ उसके तो न आया था कभी सूरज
जलाता क्यो न जाने फिर शरद का घाम भी मुझको
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हसाता चोट देकर भी बड़ा जालिम खुदा पाया
रूला देता न मरने का सुना पैगाम भी मुझको
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अजब सी रहमतें उसकी अजब ही सब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 20, 2014 at 6:30am — 14 Comments
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हमारे दुख दिखाई कब दिए हैं देवताओं को
हमेशा आँकते वो कम हमारी आपदाओं को
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मरें या जी रहे हों हम उन्हें पूजा करें हरदम
न जब भी पूज पाए हम निकल आए सजाओं को
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नहीं फिर भी हुए खुश वो भले ही सब किया अर्पण
गरल रख पास शिव जैसा सदा सौपा सुधाओं को
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पुकारा जब गया उनको दुखों से हो परेशा ढब
किया है अनसुना बरबस हमारी सब सदाओं को
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लगा करता जरूरी नित न जाने क्यों उन्हे…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on March 6, 2014 at 11:30am — 17 Comments
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