Added by अमि तेष on April 29, 2011 at 9:49am — No Comments
जो पत्थर दिल थे आँसू बहानें लगें हैं,
रु-ब-रु गर हो तो मुस्कुराने लगें हैं.
अज़ीब तर्ज है तकल्लुफ़ का फ़िज़ायों में,
छुपाते थे जो, सिलसिलें बतानें लगें हैं.
कल तलक मायूस थे जो ईद पर हम से,
अब मुखबरी मुहल्लें की सुनानें लगें हैं.…
Added by अमि तेष on April 21, 2011 at 1:30pm — 4 Comments
बैठा है, किसी नई हलचल का इंतजार है,
खुदगर्ज दिल को आज फ़िर किसी से प्यार है
पुरानी उलफ़तों की दुहाई अब नही देता,
खुमारी है नई, पर खौफ़ तो बरकरार है
हर ज़ख्म को वक्त ने कर दिया है बख्तरबंद,
कुछ दर्द के निशान आज भी यादगार है
परख लें कंही नकली न हो पैमानें का नशा
पोशीदा बातों का कोई और भी…
Added by अमि तेष on April 14, 2011 at 2:00pm — 4 Comments
Added by अमि तेष on April 8, 2011 at 2:00pm — 14 Comments
खुली आंखों से भी उसे सब ख्वाब लगता हैं
वो अंधेरें घर में बस एक चिराग लगता हैं
उसके वालिद भी एक कोरी किताब ही थे
वो भी अधूरी हसरतों का जवाव लगता हैं
जिसके माथे पर हर बक्त पसीना रहता हैं
वो खुद ही पाई पाई का हिसाब लगता हैं…
ContinueAdded by अमि तेष on April 3, 2011 at 4:00pm — 2 Comments
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