तू क्या-क्या ना सहती आई है l
कभी गंगा कहते हैं तुझको
कभी होती है देवी से उपमा
मन बिशाल ममता की मूरत
और सहनशक्ति में धरती माँ
रूप अनोखे हैं अनगिन तेरे
युग की गाथा में लक्ष्मी बाई है l
तू क्या-क्या ना सहती आई है l
तू ओस में डूबी कमल पंखुडी
रजनीगन्धा और हरसिंगार
सुरभित पुरवा के आँचल सी
घर में खिलती बन कर बहार
माटी सी घुल-घुल कर भी तू
ना कभी चैन से जीने पाई है…
ContinueAdded by Shanno Aggarwal on April 17, 2012 at 4:00am — 6 Comments
जय...जय...जय...ओ बी ओ l
यहाँ शरण में जो भी आया
ओ बी ओ ने गले लगाया l
इस मंदिर में जो भी आवे
रचना नई-नई लिखि लावे l
जो भी इसकी स्तुति गावे
नई विधा सीखन को पावे l
संपादक जी यहाँ पुजारी
उनकी महिमा भी है न्यारी l
जिसकी रचना प्यारी लागे
पुरूस्कार में वह हो आगे l
प्रबंधकों की अनुपम माया
भार प्रबंधन खूब उठाया l
जय...जय...जय..ओ बी ओ l
-शन्नो अग्रवाल
Added by Shanno Aggarwal on April 5, 2012 at 2:00am — 14 Comments
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