मजदूर
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चौक में लगी भीड़
मै चौंका , कहीं कोई घायल
अधमरा तो नहीं पड़ा
कौतूहल, झाँका अन्दर बढ़ा
वापस मुड़ा कुछ नहीं दिखा
'बाबू' आवाज सुन
पीछे मुड़ा
इधर सुनिये !
उस मुटल्ले को मत लीजिये
चार चमचे साथ है जाते
दलाल है , हराम…
Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 30, 2014 at 5:00pm — 22 Comments
कटी-पतंग
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सतरंगी वो चूनर पहने
दूर बड़ी है
इतराती बलखाती इत-उत
घूम रही है उड़ती -फिरती
हवा का रुख देखे हो जाती
कितनों का मन हर के फिरती
'डोर' हमारे हाथ अभी है
मेरा इशारा ही काफी है
नाच रही है नचा रही है
सब को देखो छका रही है
प्रेम…
Added by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on April 14, 2014 at 10:00am — 12 Comments
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