मैं लिख नहीं सकता l
मैं लिख नहीं सकता
वाणी के पर खोलकर
अम्बुधि के उर्मिल प्रवाह पर
उत्कंठित भावभंगिमा से
नीरवता का भेदन करके
घन तिमिर बीच में बन प्रभा
मधुकरी सदृश गुंजित रव से
अविरल नूतनता भर देता
मैं लिख नहीं सकता l
भू अनिल अनल में
उथल पुथल
अनृत प्रवाद का मर्दन कर
इतिवृत्तहीन विपुल गाथा
मुख अवयव से
पुष्कल निनाद
हो अनवरुद्ध
झंकृत करता
मैं…
ContinueAdded by डॉ छोटेलाल सिंह on April 25, 2018 at 12:31pm — 7 Comments
पर्यावरण (दोहा छन्द)
बढ़ा प्रदूषण इस कदर, त्राहिमाम हर ओर
जल थल नभ दूषित हुआ,मचा भयंकर शोर.1.
अपने मन का सब करे,काटे वन दिन रात
दैत्य प्रदूषण दन्त से, कैसे मिले निजात.2.
धुँवा धुँवासा हो रहा ,नहीं समझते लोग
अस्पताल में भीड़ है,घर घर बढ़ता रोग.3.
धरती का छेदन करे, पानी तल से दूर
कृषक हाल बेहाल है,मरने को मजबूर.4.
घर आँगन में वृक्ष लगे, सुंदर हो परिवेश
शुद्ध हवा सबको…
ContinueAdded by डॉ छोटेलाल सिंह on April 17, 2018 at 8:56am — 5 Comments
बदल रही परिवेश बेटियां,करके अद्भुत काम
विश्व पटल पर आगे आकर,रोशन करती नाम ll
श्रम के बल से जीत रही हैं,स्वर्ण पदक हर बार
निज प्रतिभा से कर जाती हैं, सारी बाधा पार ll
सुरम्य धरती का हर कोना , बेटी से गुलजार
स्नेह भावमय जग को करती,सदा लुटाती प्यार ll
अंगारों पर चलना सीखी , बेटी बनी जुझार
कठिन घड़ी जब भी आती है,जमकर करती वार ll
सीख सको सीखो बेटी से, जीवन का हर सार
दया धर्म समता ममता की ,…
ContinueAdded by डॉ छोटेलाल सिंह on April 11, 2018 at 7:09pm — 6 Comments
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