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धर्मेन्द्र कुमार सिंह's Blog – April 2013 Archive (3)

लघु कथा : ब्रह्मराक्षस का कुत्ता

महानगर के सबसे शानदार इलाके की सबसे अच्छी कोठियों में से एक में ब्रह्मराक्षस रहता है। वो स्वयं को दुनिया का सबसे बड़ा विद्वान समझता है और चाहता है कि उसकी विद्वत्ता के चर्चे चारों दिशाओं में हों। समय समय पर ज्ञान के प्यासे लोग उसके पास आते रहते हैं। वो फौरन उनको अपना शिष्य बना लेता है। फिर उनके कानों में फुसफुसाकर गुरुमंत्र देता है। जैसे ही शिष्य इस गुरुमंत्र का उच्चारण करता है वो कुत्ता बन जाता है। इसके बाद ब्रह्मराक्षस अपनी तमाम पोथियाँ उसके सामने बाँचता है। तत्पश्चात ब्रह्मराक्षस उसके गले…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 23, 2013 at 7:44pm — 12 Comments

कविता : धर्म की हत्या

हम कहीं भी महफ़ूज नहीं है

वो कभी भी, कहीं भी, हमारी हत्या कर सकते हैं

हम इंसान हैं

वो आतंकवादी

 

पर वो नहीं जानते

कि हम पर चलाई गई हर गोली

उनके धर्म की छाती में जाकर धँसती है

 

हम फिर पैदा हो जायेगें

सौ मरेंगे तो हजार और पैदा हो जायेंगे

 

पर उनका धर्म एक बार मर गया

तो हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जायेगा

 

धर्म जान लेने या देने से नहीं

जान बचाने से फैलता है

 

और ख़ुदा,…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 16, 2013 at 11:08pm — 8 Comments

ग़ज़ल : इश्क जब इम्तेहान लेता है

मिसरों का वज़्न : २१२२ १२१२ २२ (११२२ १२१२ २२ की छूट ली जा सकती है)

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अच्छे अच्छों की जान लेता है

इश्क जब इम्तेहान लेता है

 

बात सबकी जो मान लेता है

छोड़ सबकुछ मसान लेता है

 

वही जीता है इस नगर में जो

बेचकर घर दुकान लेता है

 

फन वो देता है जिसको भी सच्चा

पहले उसका गुमान लेता है

 

ये निशानी है खोखलेपन की

खुद को खुद ही बखान लेता है

 

जब भी…

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Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 11, 2013 at 9:30pm — 14 Comments

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