मैं पूँजीवादी मशीनरी का चमचमाता हुआ पुर्ज़ा हूँ
मेरे देश की शिक्षा पद्धति ने
मेरे भीतर मौजूद लोहे को वर्षों पहले पहचान लिया था
इसलिए फ़ौरन सुनहरे…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 24, 2014 at 11:30am — 16 Comments
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 17, 2014 at 5:30pm — 34 Comments
बह्र : २२ २२ २२ २
जीने का या मरने का
ढंग अलग हो करने का
सबका मूल्य बढ़ा लेकिन
भाव गिर गया धरने का
आज बड़े खुश मंत्री जी
मौका मिला मुकरने का
सिर्फ़ वोट देने भर से
कुछ भी नहीं सुधरने का
कूदो, मर जाओ `सज्जन'
नाम तो बिगड़े झरने का
-
(मौलिक एवं अप्रकाशित
Added by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 15, 2014 at 10:30am — 14 Comments
फल, फूल, धूप, दीप, नैवेद्य,…
ContinueAdded by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 9, 2014 at 10:30am — 26 Comments
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