“भेड़िया आया... भेड़िया आया...” पहाड़ी से स्वर गूंजने लगा। सुनते ही चौपाल पर ताश खेल रहे कुछ लोग हँसने लगे। उनमें से एक अपनी हँसी दबाते हुए बोला, “लो! सूरज सिर पर चढ़ा भी नहीं और आज फिर भेड़िया आ गया।“
दूसरा भी अपनी हँसी पर नियंत्रण कर गंभीर होते हुए बोला, “उस लड़के को शायद पहाड़ी पर डर लगता है, इसलिए हमें बुलाने के लिए अटकलें भिड़ाता है।“
तीसरे ने विचारणीय मुद्रा में कहा, “हो सकता है... दिन ही कितने हुए हैं उसे आये हुए। आया था तब…
ContinueAdded by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on April 18, 2018 at 7:00pm — 10 Comments
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