For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भेड़िया आया था (लघुकथा)

“भेड़िया आया... भेड़िया आया...” पहाड़ी से स्वर गूंजने लगा। सुनते ही चौपाल पर ताश खेल रहे कुछ लोग हँसने लगे। उनमें से एक अपनी हँसी दबाते हुए बोला, “लो! सूरज सिर पर चढ़ा भी नहीं और आज फिर भेड़िया आ गया।“

 

दूसरा भी अपनी हँसी पर नियंत्रण कर गंभीर होते हुए बोला, “उस लड़के को शायद पहाड़ी पर डर लगता है, इसलिए हमें बुलाने के लिए अटकलें भिड़ाता है।“

                                  

तीसरे ने विचारणीय मुद्रा में कहा, “हो सकता है... दिन ही कितने हुए हैं उसे आये हुए। आया था तब कितना डरा हुआ था। माता-पिता को रास्ते में डाकूओं ने मार दिया, हमने पनाह देकर अपनी बकरियां चराने का काम दे दिया... अनजानी जगह में तो आहट से भी डर लगे... है तो बच्चा ही...”

 

चौथा बात काट कर कुछ गुस्से में बोला, “बच्चा है, इसका मतलब यह नहीं कि रोज़-रोज़ हमें बुला ले... झुण्ड से बिछड़ा एक ही तो भेड़िया है पहाड़ी पर... उस औंधी खोपड़ी के डरने के कारण रोज़ दस-पांच लोगों को भागना पड़ता है, फायदा क्या उसे भेजने का?”

और वह चिल्लाते हुए बोला, “कोई भेड़िया नहीं आया... पहाड़ी पर कोई नहीं जाएगा...”

 

वहां से गुजरते हर स्त्री-पुरुष ने वह बात सुन ली और पहाड़ी की तरफ किसी ने मुंह नहीं किया।

 

“भेड़िया आया...” का स्वर उस वक्त तक गूँज रहा था। कुछ समय पश्चात् उस स्वर की तीव्रता कम होने लगी और बाद में बंद हो गयी।

 

शाम धुंधलाने लगी, वह लड़का लौट कर नहीं आया। आखिरकार गाँव वालों को चिंता हुई, उनमें से कुछ लोग पहाड़ी पर गये। वहां ना तो बकरियां थीं और ना ही वह लड़का। हाँ! किसी भूखे भेड़िये के रोने की धीमी आवाज़ ज़रूर आ रही थी।

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 923

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by pratibha pande on April 20, 2018 at 9:18pm

जिसे पीड़ित समझा गया वो शातिर निकला  वाह .. बोध कथा से प्रतीक लेकर शानदार सृजन  हार्दिक बधाई आदरणीय चंद्रेश  जी 

Comment by Rahila on April 20, 2018 at 7:21am

समसामयिक रचना,बेहद प्रभावी और वर्तमान हालातों पर सटीक चोट करती हुई। बहुत बधाई आपको

Comment by Tasdiq Ahmed Khan on April 19, 2018 at 9:58pm

जनाब चंद्रेश कुमार साहिब, अच्छी लघुकथा हुई है ,मुबारक बाद क़ुबूल फरमायें।

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 19, 2018 at 8:27pm

 वर्तमान/ समसामयिक नकारात्मक घटनाचक्र/ यथार्थ पर तमाम मीडिया में प्रकाशित हो रही विभिन्न विधाओं में रचनाओं से हटकर मेरे नज़रिए में उपरोक्त बेहद सकारात्मक संदेश वाहक रचना में 'भेड़िया' एक बहुआयामी बिम्ब/प्रतीक के रूप में प्रयुक्त किया गया है भारतीय साहित्यकारों का प्रतिनिधित्व करते एक शोधकर्ता लघुकथाकार के दिल की ' भारत की बात' ओबीओ के गंभीर पाठकों को और भारत के शुभ चिंतकों तक बाख़ूबी सम्प्रेषित करने के लिए!


भेड़िया = रेपिस्ट/ बलात्कारी; स्वार्थी- राजनेता या राजनीतिक दल; भ्रष्टाचार; कुनीति/कुरीति/अपसंस्कृति; विदेशी आक्रमणकारी/उद्योगपति/ विदेशी निवेश /तकनीक ...... आदि बहुत कुछ!


इसी प्रकार "पहले/दूसरे/तीसरे/चौथे पात्र ..... स्त्री-पुरुष" को हमारी तथाकथित "देशभक्त जनता" के प्रतिनिधित्व करते उन पात्रों को प्रयुक्त किया गया है, जो कि वास्तव में 'ढोंगी दिव्यांग' बन कर भेड़िए की आमद/शक्ति/हमलों से भयभीत होते हुए भी 'पंगु' बन कर उसकी उपेक्षा कर 'अंत में' एकत्रित हो कर अपने अश्रु बहाते/ठहाकों से फिर सामान्य जीवन जीने लगते हैं और " भूखे भेड़िए" के सुर वहां गूंजते रहते हैं। वह भूखा बहुरूपिया कहीं न कहीं अपने काम पर लगा हुआ है।


जनता है कि अभी भी उस 'भूखे भेड़िया' का परम्परागत/आदतन आलाप कर रही है, रोना रो रही है!


//वहां ना तो बकरियां थीं और ना ही वह लड़का। हाँ! किसी भूखे भेड़िये के रोने की धीमी आवाज़ ज़रूर आ रही थी।

//.. ये पंक्तियां बता रहीं हैं कि आमतौर पर चेतने से पहले ही " रेपिस्ट/ बलात्कारी; स्वार्थी- राजनेता या राजनीतिक दल; भ्रष्टाचार; कुनीति/कुरीति/अपसंस्कृति; विदेशी आक्रमणकारी/उद्योगपति/ विदेशी निवेश /तकनीक ... आदि अपने सुरक्षित मुकाम पर पहुंच चुकी होती हैं अपनी अभीष्ट छाप छोड़ कर!


रचना देश की जनता को यूं चिंतन-मनन के लिए विवश कर चेताती है, जगाती है,
और ' उल्लू' बनने के बजाय नव जागरण के लिए आंदोलित करती है।


आदरणीय लेखक महोदय डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी जी को एक बार फिर से बहुत-बहुत मुबारकबाद और आभार।


अभी दूसरी बार पढ़ कर केवल इतना समझ पाया हूं। कृपया ग़लत होने पर मुआफ़ कीजिएगा। मैं इसे कितना सही समझ सका, मार्गदर्शन निवेदित !

आदरणीय लेखक महोदय डॉ. चन्द्रेश कुमार छतलानी जी को एक बार फिर से बहुत-बहुत मुबारकबाद और आभार। 
अभी दूसरी बार पढ़ कर केवल इतना समझ पाया हूं। कृपया ग़लत होने पर मुआफ़ कीजिएगा। मैं इसे कितना सही समझ सका, मार्गदर्शन निवेदित हैं!

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 19, 2018 at 5:20pm

आदरणीय चंद्रेश जी ..रचना का अंत भावुक बनाने वाला है ...इस शानदार प्रयास पर हार्दिक बधाई सादर 

Comment by Samar kabeer on April 19, 2018 at 2:45pm

जनाब चन्द्रेश जी आदाब,बहुत अच्छी लघुकथा है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।

Comment by TEJ VEER SINGH on April 19, 2018 at 11:23am

हार्दिक बधाई आदरणीय चन्द्रेश जी। एक लंबे अरसे के बाद आपकी एक लाज़वाब रचना पढ़ने को मिली। बेहतरीन प्रस्तुति। मेरे विचार से वह लड़का ही भेड़ और बकरी लेकर चंपत हो गया। इसलिये ही भेड़िया भूखा रह गया। लघुकथा बेहद तीखा कटाक्ष छोड़ गयी है।यही तो लघुकथा का अनकहा मर्म है।

Comment by Neelam Upadhyaya on April 19, 2018 at 10:40am

आदरणीय चंद्रेश कुमार जी, एक मशहूर कहानी की लघुकथा के रूप में प्रस्तुति अच्छी लगी । आदरणीय नीलेश जी से मैं भी सहमत हूँ – "अंत में भेड़िया भूखा क्यूँ रहा "

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 18, 2018 at 8:15pm

आ. चित्रेश जी,
अच्छी   कथा हुई है ..
अंत में भेड़िया भूखा क्यूँ रहा यह समझ नहीं  पाया मैं.
सादर 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 18, 2018 at 8:08pm

वाह/आह....

//“भेड़िया आया... भेड़िया आया...” // ... एक मशहूर कहावत/बोधकथा के कथानक को समसामयिक    संदर्भित करते हुए बेहतरीन पटाक्षेप के साथ उम्दा विचारोत्तेजक रचना के लिए तहे दिल से बहुत-बहुत मुबारकबाद मुहतरम जनाब डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी जी।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

लौटा सफ़र से आज ही, अपना ज़मीर है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२२१/२१२१/१२२१/२१२ ***** जिनकी ज़बाँ से सुनते  हैं गहना ज़मीर है हमको उन्हीं की आँखों में पढ़ना ज़मीर…See More
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए आभार। आपका स्नेहाशीष…"
18 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आपको प्रयास सार्थक लगा, इस हेतु हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण धामी जी. "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से अलंकृत करने का दिल से आभार आदरणीय । बहुत…"
yesterday
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"छोटी बह्र  में खूबसूरत ग़ज़ल हुई,  भाई 'मुसाफिर'  ! " दे गए अश्क सीलन…"
yesterday
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . नजर
"अच्छा दोहा  सप्तक रचा, आपने, सुशील सरना जी! लेकिन  पहले दोहे का पहला सम चरण संशोधन का…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कापुरुष है, जता रही गाली// सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। सुंदर, सार्थक और वर्मतमान राजनीनीतिक परिप्रेक्ष में समसामयिक रचना हुई…"
Tuesday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . नजर

नजरें मंडी हो गईं, नजर हुई  लाचार । नजरों में ही बिक गया, एक जिस्म सौ बार ।। नजरों से छुपता…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२/२१२/२१२/२१२ ****** घाव की बानगी  जब  पुरानी पड़ी याद फिर दुश्मनी की दिलानी पड़ी।१। * झूठ उसका न…See More
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"शुक्रिया आदरणीय। आपने जो टंकित किया है वह है शॉर्ट स्टोरी का दो पृथक शब्दों में हिंदी नाम लघु…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-125 (आत्मसम्मान)
"आदरणीय उसमानी साहब जी, आपकी टिप्पणी से प्रोत्साहन मिला उसके लिए हार्दिक आभार। जो बात आपने कही कि…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service