बेटी के शव को पथराई आँखों से देखते रहे वह.बेटी के सिर पर किसी का हाथ देख चौंक कर नज़रें उठाई तो देखा वह था. लोगों में खुसुर पुसुर शुरू हो गयी कुछ मुठ्ठियाँ भींचने लगीं इसकी यहाँ आने की हिम्मत कैसे हुई. ये देख कर वह कुछ सतर्क हुए आगे बढ़ते लोगों को हाथ के इशारे से रोका और उठ खड़े हुए. वह चुपचाप एक किनारे हो गया.
तभी अचानक उन्हें कुछ याद आया और वह अन्दर कमरे में चले गए. बेटी की मुस्कुराती तस्वीर को देखते दराज़ से वह…
ContinueAdded by Kavita Verma on April 18, 2013 at 12:00am — 15 Comments
Added by Kavita Verma on April 15, 2013 at 9:00pm — 8 Comments
साथ क्या है ?
एक भ्रम के सिवाय
एक भुलावा रिश्तों का
झूठा दिलासा अपनों का
क्या सच में कोई होता है साथ ?
आखिर को झेलने होते हैं
दुःख अकेले
उठानी होती है पीड़ा
टीसों की
जज्ब करना होता है दर्द
खुद ही
साथ चलते अपने
साथ चलते रिश्ते
कब तक कितने साथ होते हैं?
अकेला पैदा हुआ इंसान
ताउम्र होता है अकेला
उसकी ख़ुशी ,दुःख
भी नहीं होते सिर्फ उसके
जुड़े होते हैं वे भी दूसरों से
और उनकी मर्जी…
Added by Kavita Verma on April 9, 2013 at 8:01pm — 4 Comments
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