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दर्द दिल का जो बढ़ा दे, बोलिए मरहम कहाँ है
रौशनी के दौर में अब तम के जैसा तम कहाँ है
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कर रहे तुम रोज दावे चीज अद्भुत है बनाई
नफरतें पर जो मिटा दे लैब में वो बम कहाँ है
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जै जवानों, जै किसानों, की सदा में थी कशिश जो
अब सियासत की कहन में यार वैसा दम कहाँ है
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मत कहो तुम है खिलाफत धार के विपरीत चलना
चाहते बस जानना हम धार का उद्गम कहाँ…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 24, 2014 at 1:00pm — 24 Comments
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हॅसी में राज पाया है, कि कैसे उन को मुस्काना
उदासी से तेरी सीखे, कसम से फूल मुरझाना
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भले ही खूब महफिल में, हया का रंग दिखला तू
गुजारिश तुझ से पर दिल की, अकेले में न शरमाना
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करो नफरत से नफरत तुम, इसी से दूरियाँ बढ़ती
मुहब्बत पास लाती है, भला क्या इससे घबराना
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हमें है बंदिशों जैसे, कसम से रतजगे उसके
इसी से हो गया मुश्किल, सपन में यार अब…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 22, 2014 at 10:30am — 8 Comments
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आँसुओं को यूँ मिलाकर नीर में
ज्यों दवा हो पी रहा हूँ पीर में
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हाथ की रेखा मिटाकर चल दिया
क्या लिखा है क्या कहूँ तकदीर में
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कौन डरता जाँ गवाने के लिए
रख जहर जितना हो रखना तीर में
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हर तरफ उसके दुशासन डर गया
मैं न था कान्हा जो बधता चीर में
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माँ के हाथों सूखी रोटी का मजा
आ न पाया यार तेरी खीर में
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शायरी कहता रहा…
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 17, 2014 at 10:30am — 15 Comments
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जानता हूँ देह के बेलौस प्यासे आप हैं
किन्तु जनता की नजर में संत खासे आप हैं
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खुशमिजाजी आप की सन्देश देती और कुछ
लोग कहते यूँ बहुत पीडि़त जरा से आप है
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Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 11, 2014 at 11:00am — 14 Comments
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सियासत पूछ मत तुझमें पतन क्या-क्या नहीं देखा
बहुत खुदगर्ज देखे हैं मगर तुझ सा नहीं देखा
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महज कुर्सी को दुश्मन से करे तू लाख समझौते
चरित तुझ सा किसी का भी यहाँ गिरता नहीं देखा
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सपन में भी दिखा करती मुझे तो बस सियासत ही
सियासत से मगर कच्चा कोई रिश्ता नहीं देखा
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बराबर बाटते देखी मुहब्बत भी समानों सी
बड़ा-छोटा करे माँ प्यार का हिस्सा नहीं …
ContinueAdded by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 7, 2014 at 12:30pm — 23 Comments
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