2122 2122 2122 212
जानता हूँ देह के बेलौस प्यासे आप हैं
किन्तु जनता की नजर में संत खासे आप हैं
*
खुशमिजाजी आप की सन्देश देती और कुछ
लोग कहते यूँ बहुत पीडि़त जरा से आप है
*
राह में उगते बबूलों को तुम्हीं सीचा किये
किसलिए फिर दर्द पर मेरे रुआँसे आप हैं
*
आपका रुतवा सियासत में है केवल इसलिए
देश कहता राजरानी के नवासे आप हैं
*
कह रहे मुझको तमाशेबाज , तुम भी खूब हो
पर हकीकत रोज करते तो तमाशे आप हैं
*
जानते हो खुद के बारे भाग दसवाँ भी नहीं
और मेरी फितरतों के सौ खुलासे आप हैं
रचना मौलिक और अप्रकाशित
Comment
सभी विद्वजनों और शुभचिंतकों का हार्दिक आभार कि उत्साहवर्धन के साथ साथ कमियों से भी अवगत कराया. दरअसल शुतुरगुरबा एब का ज्ञान न होने के कारन इसमें कमियां रह गयी . अब भविष्य में इस कमी को न आने दूंगा .
जिन पंक्तियों में यह दोष आ रहा है उनमे सुधर के साथ इस प्रकार पढ़ा जा सकता है -
१. राह में उगते बबूलों को तुम्हीं सीचा किये = राह में उगती बबूलें आप ही सीचा किये
२. कह रहे मुझको तमाशेबाज , तुम भी खूब हो =आप कहते हैं तमाशेबाज मुझको क्या गजब
३. जानते हो खुद के बारे भाग दसवाँ भी नहीं = जानते हैं खुद के बारे भाग दसवाँ भी नहीं
आप सभी से अनुरोध है कि सुधार पर प्रतिक्रिया अवश्य दें . हार्दिक धन्यवाद .
कहन तो लाजवाब हुई है, अंदाज़ भी रोचक है. लेकिन कई शेर एक ही इंगित के लिए तुम, आप दोनों के सर्वनाम में झूलते दिख रहे हैं. यह दोष माना जाता है.
शुभेच्छाएँ.
सुन्दर ग़ज़ल
सामयिक कहन पर सुन्दर ग़ज़ल हुई है , हार्दिक बधाई
पर, तीसरे , पांचवें और छठे शेर में शुतुर्गुर्बा का ऐब बन रहा है ...उसे देख लें
आदरणीय लक्ष्मण भाई , पूरी ग़ज़ल बहुत लाजवाब कही है , आपको मेरी दिली बधाइयाँ !! बहुत पीडि़त जरा से आप है -- इस मिसरे मे बहुत और ज़रा सा - दोनो एक साथ हैं , सोच के देखियेगा !!
एह्तारीन गज़ल के लिए दाद कबूल करें आदरणीय.
वाह खूबसूरत ग़ज़ल बेहद संजीदा तरीके से व्यंग करते शेर
दाद क़ुबूल फरमाएं
बहुत सुन्दर गजल। ढेरों दाद कुबूल करें। सादर............. |
जानता हूँ देह के बेलौस प्यासे आप हैं
किन्तु जनता की नजर में संत खासे आप हैं
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खुशमिजाजी आप की सन्देश देती और कुछ
लोग कहते यूँ बहुत पीडि़त जरा से आप है
*
वाह सर जी ग़ज़ल अच्छी लगी बधाई
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