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राजरानी के नवासे आप हैं - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

2122        2122     2122      212


जानता  हूँ  देह   के  बेलौस  प्यासे  आप  हैं
किन्तु जनता की नजर में संत खासे आप हैं

*
खुशमिजाजी आप की सन्देश देती और कुछ
लोग कहते  यूँ बहुत पीडि़त  जरा से  आप है

*
राह में उगते  बबूलों  को  तुम्हीं  सीचा  किये
किसलिए  फिर दर्द  पर  मेरे  रुआँसे आप हैं

*
आपका रुतवा सियासत में है केवल इसलिए
देश   कहता  राजरानी  के  नवासे  आप   हैं

*
कह रहे मुझको तमाशेबाज , तुम भी खूब हो
पर हकीकत  रोज करते  तो तमाशे  आप हैं

*
जानते हो  खुद के  बारे भाग दसवाँ भी नहीं
और  मेरी फितरतों के  सौ खुलासे  आप  हैं

रचना मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on May 1, 2014 at 9:36am

सभी विद्वजनों और शुभचिंतकों का हार्दिक आभार कि उत्साहवर्धन के साथ साथ कमियों से भी अवगत कराया. दरअसल शुतुरगुरबा एब का ज्ञान न होने के कारन इसमें कमियां रह गयी . अब भविष्य में इस कमी को न आने दूंगा .

जिन पंक्तियों में यह दोष आ रहा है उनमे सुधर के साथ इस प्रकार पढ़ा जा सकता है -

१. राह में उगते  बबूलों  को  तुम्हीं  सीचा  किये = राह में उगती  बबूलें आप ही  सीचा  किये

२. कह रहे मुझको तमाशेबाज , तुम भी खूब हो  =आप कहते हैं तमाशेबाज मुझको क्या गजब

३. जानते हो  खुद के  बारे भाग दसवाँ भी नहीं = जानते हैं  खुद के  बारे भाग दसवाँ भी नहीं

आप सभी से अनुरोध है कि सुधार पर प्रतिक्रिया अवश्य दें . हार्दिक धन्यवाद .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 1, 2014 at 2:01am

कहन तो लाजवाब हुई है, अंदाज़ भी रोचक है. लेकिन कई शेर एक ही इंगित के लिए तुम, आप दोनों के सर्वनाम में झूलते दिख रहे हैं. यह दोष माना जाता है.

शुभेच्छाएँ.

Comment by savitamishra on April 19, 2014 at 7:59pm


सुन्दर ग़ज़ल


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 19, 2014 at 6:52pm

सामयिक कहन पर सुन्दर ग़ज़ल हुई है , हार्दिक बधाई 

पर, तीसरे , पांचवें और छठे शेर में शुतुर्गुर्बा का ऐब बन रहा है ...उसे देख लें 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 14, 2014 at 12:15pm

आदरणीय लक्ष्मण भाई , पूरी ग़ज़ल बहुत लाजवाब कही है , आपको मेरी दिली बधाइयाँ !! बहुत पीडि़त  जरा से  आप है -- इस मिसरे मे बहुत और ज़रा सा - दोनो एक साथ हैं , सोच के देखियेगा !!

Comment by भुवन निस्तेज on April 13, 2014 at 11:40pm

एह्तारीन गज़ल के  लिए दाद कबूल करें आदरणीय.  

Comment by Anurag Singh "rishi" on April 13, 2014 at 12:58pm

वाह खूबसूरत ग़ज़ल बेहद संजीदा तरीके से व्यंग करते शेर
दाद क़ुबूल फरमाएं

Comment by Shyam Narain Verma on April 12, 2014 at 3:17pm
बहुत सुन्दर गजल।  ढेरों दाद कुबूल करें। सादर.............
Comment by gumnaam pithoragarhi on April 12, 2014 at 12:39pm

जानता  हूँ  देह   के  बेलौस  प्यासे  आप  हैं
किन्तु जनता की नजर में संत खासे आप हैं

*
खुशमिजाजी आप की सन्देश देती और कुछ
लोग कहते  यूँ बहुत पीडि़त  जरा से  आप है

*

वाह सर जी ग़ज़ल अच्छी लगी बधाई

Comment by वेदिका on April 12, 2014 at 10:05am
बहूत खूब सम सामयिक गजल हुयी है। बेहतरीन शेर हुए है। आ0 शिज्जू जी की बात 'शे का दोष' को गौर करिएगा।
बधाई प्रेषित करती हूँ
सादर

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