किसलिए भण्डार अपने भर रहे हो
देश बेबस को निवाला कर रहे हो।१।
*
रंग पोते धर्म का बाहर से अपने
आप केवल पाप के ही घर रहे हो।२।
*
निर्वसनता चन्द लोगों को सुहाती
इसलिए क्या चीर सब का हर रहे हो।३।
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कत्ल का आदेश तुमने ही दिया जब
खून के छींटों से क्योंकर डर रहे हो।४।
*
व्यर्थ है उम्मीद पिघलोगे कभी ये
है पता हर जन्म में पत्थर…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 29, 2021 at 5:40am — 6 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
चिन्ता करें जो आम की शासन नहीं रहे
कारण इसी के लाखों के जीवन नहीं रहे।१।
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हर कोई खेल सकता है पैसों के जोर पर
कानून आज देश में बन्धन नहीं रहे।२।
*
अब हो गये हैं आँख वो भूखे से गिद्ध की
जो थे बचाते लाज को यौवन नहीं रहे।३।
*
आई हवा नगर की तो दीवारें बन गयीं
मिलजुल जहाँ थे बैठते आगन नहीं रहे।४।
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जीवन का दर्द आँखों में उनकी रहा जवाँ
बेवा हो जिनके हाथों में कंगन नहीं रहे।५।
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तकनीक…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 26, 2021 at 12:48pm — 4 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
हमने किसी को हर्ष का इक पल नहीं दिया
सूखी धरा को जैसे कि बादल नहीं दिया।१।
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रूठे तो उससे रोज ही लेकिन मनाया कब
आँसू ढले जो आँखों से आँचल नहीं दिया।२।
*
गंगा से भर के लाये थे पुरखों को तारने
जलते वनों की प्यास को वो जल नहीं दिया।३।
*
कहने पे मन को आपके बंदिश में क्यों रखें
यूँ जब किसी भी द्वार को साँकल नहीं दिया।४।
*
कालिख लगी है इनमें जो सौगात जग की है
आँखों में हम ने एक भी काजल नहीं…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 25, 2021 at 12:36pm — 6 Comments
कौन आया काम जनता के लिए
कह गये सब राम जनता के लिए।१।
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सुख सभी रखते हैं नेता पास में
हैं वहीं दुख आम जनता के लिए।२।
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देख पाती है नहीं मुख सोच कर
बस बदलते नाम जनता के लिए।३।
*
छाँव नेताओं के हिस्से हो गयी
और तपता घाम जनता के लिए।४।
*
अच्छे वादे और बोतल वोट को
हो गये तय दाम जनता के लिए।५।
*
न्याय के पलड़े में समता है कहाँ
भोर नेता साम …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 8, 2021 at 10:01pm — 3 Comments
२२१/२१२१/१२२१/२१२
हमने कहीं पे लौट आ बचपन क्या लिख दिया
बोली जवानी क्रोध में दुश्मन क्या लिख दिया।१।
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घर के बड़े भी काट के पेड़ों को खुश हुए
बच्चों ने चौड़ा चाहिए आँगन क्या लिख दिया।२।
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तस्कर तमाम आ गये गुपचुप से मोल को
माटी को यार देश की चन्दन क्या लिख दिया।३।
*
आँखों से उस की धार ये रुकती नहीं है अब
भाता है जब से आपने सावन क्या लिख दिया।४।
*
वो सब विहीन रीड़ के श्वानों से बन …
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 7, 2021 at 1:00pm — 10 Comments
२१२२/२१२२/२१२
सादगी से घर सँभाला कीजिए
लालसा को मत उछाला कीजिए।१।
*
यह धरा तो रौंद डाली जालिमों
चाँद का मुँह अब न काला कीजिए।२।
*
करके सूरज से उधारी आब की
चाँद से कहते उजाला कीजिए।३।
*
जब नया देने की कुव्वत ही नहीं
मत फटे में पाँव डाला कीजिए।४।
*
गर तबीयत जाननी है देश की
सबसे पहले ठीक आला कीजिए।५।
*
चाँद तारे सिर्फ महलों को न दो
झोपड़ी में भी उजाला कीजिए।६।…
Added by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 6, 2021 at 6:30pm — 4 Comments
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